गाँधी-इरविन समझौता, 1931
प्रथम
गोलमेज सम्मेलन की असफलता से
ब्रिटिश शासन के द्वारा
अब इस बात
को समझ लिया गया
था कि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
के सहयोग बिना गोलमेज सम्मेलन
सफल नहीं हो सकता।
इसलिए समझौते का मार्ग प्रशस्त
करने हेतु वायसराय ने
25 जनवरी 1931 में गाँधी जी
और कांग्रेस कार्य समिति के सदस्यों को
जेल से रिहा किया।
प्रथम गोलमेज सम्मेलन से लौटने के पश्चात सर तेज बहादुर सप्रू और मुकुंदराव आनंदराव जयकर (M. R. Jayakar) ने अपनी मध्यस्थता के प्रयास प्रारंभ किये। इन मध्यस्थता प्रयत्नों के परिणाम स्वरूप कांग्रेस कार्यकारिणी समिति ने गांधीजी को वायसराय से चर्चा करने के लिये अधिकृत किया। तत्पश्चात 19 फरवरी 1931 को गांधीजी ने भारत के तत्कालीन वायसराय लार्ड इरविन से भेंट की और उनकी बातचीत 15 दिनों तक चली। इसके परिणामस्वरूप 5 मार्च 1931 को एक समझौता हुआ, जिसे गांधी-इरविन समझौता कहा जाता है। इस समझौते ने कांग्रेस की स्थिति को सरकार के बराबर कर दिया, क्योंकि पहली बार ब्रिटिश सरकार ने भारतीयों के साथ समानता के स्तर पर समझौता किया।
गाँधी-इरविन समझौता, 1931 में लार्ड इरविन
ने स्वीकार किया कि -
• हिंसा
के आरोपियों को छोड़कर बाकी
सभी राजनीतिक बन्दियों को छोड़ दिया
जाएगा।
• भारतीयों
को समुद्र तट की एक
निश्चित सीमा के भीतर
बिना किसी कर (Tax) के
नमक तैयार करने की अनुमति
दी जायेगी।
• मदिरा,
अफीम और विदेशी वस्तओं
की दुकानों के सामने शांतिपूर्ण
विरोध प्रदर्शन की आज्ञा दी
जायेगी।
• सविनय
अवज्ञा आन्दोलन के दौरान सरकारी
सेवाओं से त्यागपत्र दे
चुके भारतीयों के मामले में
सहानुभूतिपूर्वक विचार-विमर्श किया जायेगा।
• सविनय
अवज्ञा आन्दोलन के दौरान जब्त/अपहरण की सम्पत्ति उनके
स्वामियों को वापस की
जायेगी।
• आपातकालीन
अध्यादेशों को वापस ले
लिया जायेगा।
वायसराय
ने गांधीजी की निम्न दो
मांगे अस्वीकार कर दी-
a) पुलिस
ज्यादतियों की जांच करायी
जाये।
b) भगत
सिंह तथा उनके साथियों
की फांसी की सजा माफ
कर दी जाये।
कांग्रेस
की ओर से गांधीजी
ने निम्न शर्तें स्वीकार की -
• कांग्रेस
द्वारा सविनय अवज्ञा आन्दोलन स्थगित कर दिया जाएगा।
• कांग्रेस
द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में भाग लेगी।
कांग्रेस द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में इस शर्त
पर भाग लेगी कि
सम्मेलन में संवैधानिक प्रश्नों
के मुद्दे पर विचार करते
समय परिसंघ, भारतीय उत्तरदायित्व तथा भारतीय हितों
के संरक्षण एवं सुरक्षा के
लिये अपरिहार्य मुद्दों पर विचार किया
जायेगा। (इसके अंतर्गत रक्षा,
विदेशी मामले, अल्पंसख्यकों की स्थिति तथा
भारत की वित्तीय साख
जैसे मुद्दे शामिल होगे) ।
• कांग्रेस
ब्रिटिश सामान का बहिष्कार आन्दोलन
नहीं करेगी।
गाँधी-इरविन समझौता समझौता इसलिए महत्वपूर्ण था क्योंकि पहली बार ब्रिटिश सरकार ने भारतीयों के साथ समानता के स्तर पर समझौता किया।
गाँधी इरविन समझौता | Gandhi–Irwin Pact in Hindi | दिल्ली समझौता |
प्रश्न और उत्तर (QnA)
Q.
गांधी-इरविन समझौता
दिल्ली
में
कब
हस्ताक्षरित
हुआ? /इरविन समझौता कब हुआ?/ गांधी इरविन समझौता कब और कहां हुआ?
A. गांधी-इरविन
समझौता दिल्ली में 5 मार्च 1931 को हस्ताक्षरित हुआ था
Q. गांधी इरविन
समझौता की मध्यस्थता किसने की?
A. गांधी इरविन
समझौता की मध्यस्थता सर तेज बहादुर सप्रू और डॉक्टर जयकर ने की
Q. गांधी इरविन
समझौता को और किस नाम से जाना जाता है?
A. गांधी इरविन
समझौता को दिल्ली समझौता के नाम से जाना जाता है
Q. गांधी इरविन
समझौता का मुख्य कारण क्या था?
A. दूसरे गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने के लिए कांग्रेस को राजी करना।
Q. किसने इरविन
तथा गांधी को 'दो महात्मा कहा था?
A. सरोजिनी
नायडू ने इरविन तथा गांधी को 'दो महात्मा कहा था
Q. गांधी-इरविन समझौता की विशेषताएं क्या
थी??गांधी इरविन समझौता क्या था/ गांधी
इरविन समझौता किसे कहते हैं?
A.
- सभी राजनीतिक बन्दियों को छोड़ दिया जाएगा।
- नमक तैयार करने की अनुमति दी जायेगी।
- मदिरा, अफीम और विदेशी वस्तओं की दुकानों के सामने शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन की आज्ञा
- जब्त/अपहरण की सम्पत्ति उनके स्वामियों को वापस
- कांग्रेस की ओर से गांधीजी ने निम्न शर्तें स्वीकार की -
- सविनय अवज्ञा आन्दोलन स्थगित।
- कांग्रेस द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में भाग
- ब्रिटिश सामान का बहिष्कार नहीं ।
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