हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (Hindustan Socialist Republican Association UPSC in Hindi)
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1. हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन (एच॰आर॰ए॰) (Hindustan Republican Association in Hindi)
हिन्दुस्तान
रिपब्लिकन ऐसोसिएशन (एच॰आर॰ए॰) भारत की स्वतंत्रता
से पहले उत्तर भारत
की एक प्रमुख क्रान्तिकारी
पार्टी थी जिसका गठन
हिन्दुस्तान को अंग्रेजों के
शासन से मुक्त कराने
के उद्देश्य से उत्तर प्रदेश
तथा बंगाल के क्रान्तिकारियों द्वारा
सन् 1924 में कानपुर
में किया गया था।
सन् 1924 से लेकर 1931 तक
इस संगठन का पूरे भारतवर्ष
में दबदबा रहा।
गाँधी जी ने
चौरी चौरा की घटना (1922) के बाद असहयोग आन्दोलन को वापस ले लिया था। इस कारण भारत
में आजा़दी की लड़ाई का आंदोलन शिथिल पड़ गया
था। जनवरी 1923 में चितरंजन दास “देशबन्धु” और मोतीलाल नेहरू ने मिलकर स्वराज पार्टी बना ली। असहयोग आन्दोलन को वापस लेने से असन्तुष्ट नवयुवकों
ने सितम्बर 1923 में हुए दिल्ली के विशेष कांग्रेस अधिवेशन में यह निर्णय लिया कि वे
भी अपनी पार्टी का गठन करेंगे।
3 अक्टूबर
1924 को इस पार्टी की
एक कार्यकारिणी बैठक कानपुर में
की गयी, जिसमें शचींद्रनाथ
सान्याल (संस्थापक), योगेश चन्द्र चटर्जी व राम प्रसाद
बिस्मिल आदि कई प्रमुख
सदस्य शामिल हुए। कानपुर की
इस बैठक में हिन्दुस्तान
रिपब्लिकन ऐसोसिएशन (एच॰आर॰ए॰) की स्थापना की
गयी ।
सचिन्द्र सान्याल को संगठन का राष्ट्रीय संयोजक नियुक्त किया गया। पार्टी का नेतृत्व राम प्रसाद बिस्मिल को सौंपकर शचींद्रनाथ सान्याल व योगेश चन्द्र चटर्जी संगठन के विस्तार के लिए बंगाल चले गए।
मुख्यतः
बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश (आगरा, इलाहाबाद, बनारस, कानपुर, लखनऊ,
सहारनपुर और शाहजहाँपुर), पंजाब,
मद्रास तथा दिल्ली जैसे प्रांतों में
हिंदुस्तान रिपब्लिकन की शाखाएं स्थापित
की गयी थी।
एच॰आर॰ए॰ की स्थापना में लाला हरदयाल की भूमिका:
हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन (एच॰आर॰ए॰) की स्थापना में लाला हरदयाल की महत्वपूर्ण भूमिका थी। लाला हरदयाल उन दिनों विदेश में रहकर भारत को स्वतन्त्र कराने की रणनीति बनाने में जुटे हुए थे। वे काफी समय से राम प्रसाद 'बिस्मिल' के सम्पर्क में थे।
लाला हरदयाल ने ही पत्र लिखकर
बिस्मिल को शचींद्रनाथ सान्याल
व यदु गोपाल मुखर्जी
से मिलकर नयी पार्टी का
संविधान तैयार करने की सलाह
दी थी। उनकी सलाह
मानकर बिस्मिल इलाहाबाद गये और शचींद्रनाथ
सान्याल के घर पर
पार्टी का संविधान तैयार
किया। पार्टी का संविधान पीले रंग के
पर्चे पर टाइप करके
सदस्यों को भेजा गया।
क्रान्तिकारी घोषणा-पत्र का प्रकाशन - दि रिवोल्यूशनरी:
एच०आर०ए०
की ओर से 1
जनवरी 1925 को दि
रिवोल्यूशनरी के नाम से
चार पृष्ठ का एक इश्तहार
छापा गया। इसे हिन्दुस्तान
के सभी प्रमुख स्थानों
पर वितरित किया गया। यह
इस दल का खुला
घोषणा पत्र था जो
अंग्रेज़ी में दि रिवोल्यूशनरी
के नाम से छापा
गया था। दि रिवोल्यूशनरी
के नाम से अंग्रेज़ी
में प्रकाशित इस घोषणापत्र में
क्रान्तिकारियों के वैचारिक चिन्तन
को भली-भाँति समझा
जा सकता है।
काकोरी काण्ड, 1925:
हिन्दुस्तान
रिपब्लिकन ऐसोसिएशन दल के दो
नेता- शचीन्द्रनाथ सान्याल और योगेशचन्द्र चटर्जी
बंगाल पहुंचते ही पकड़ लिये
गये। इन दोनों नेताओं
के गिरफ़्तार हो जाने से
बिस्मिल के कन्धों पर
पूरी पार्टी का उत्तरदायित्व आ
गया।
पार्टी
के कार्य हेतु धन की
आवश्यकता बढ़ गयी थी।
पार्टी-फ़ण्ड के लिये पैसा
उगाहने की नीयत से
9 अगस्त 1925 को लखनऊ
जिले के काकोरी रेलवे
स्टेशन के पास 8 डाउन
सहारनपुर-लखनऊ पैसेन्जर ट्रेन
को चेन खींच कर
रोक लिया और उसमें
रखा हुआ सरकारी खजाना
लूट कर फ़रार हो
गये।
अंग्रेज
सरकार ने कुल 40
क्रान्तिकारियों को गिरफ्तार किया।
काकोरी काण्ड मुकदमें में राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी,
राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खाँ तथा रोशन
सिंह को फाँसी सजा
दी गयी जबकि अन्य
क्रान्तिकारियों को 4 वर्ष
की सजा से लेकर
अधिकतम आजीवन कारावास तक का दण्ड
दिया गया। इस घटना
ने हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन (H.R.A) को गंभीर रूप
से क्षतिग्रस्त कर दिया और
इसकी गतिविधियों को एक बड़ा
झटका दिया।
2. हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन का पुनर्गठन
1928 से पहले
हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन को हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के रूप में
जाना जाता था। काकोरी काण्ड
के पश्चात् यह संगठन छिन्न-भिन्न हो गया।
काकोरी काण्ड
के पश्चात् चन्द्र शेखर
आज़ाद ने भगत सिंह,
विजय कुमार सिन्हा, कुन्दन लाल गुप्त, भगवती
चरण वोहरा, जयदेव कपूर व शिव
वर्मा आदि से सम्पर्क
किया।
8 व
9 सितम्बर 1928 को चंद्रशेखर आज़ाद
के नेतृत्त्व में दिल्ली के
फिरोजशाह कोटला मैदान में ‘हिंदुस्तान रिपब्लिकन
एसोसिएशन’ का
नाम बदलकर ‘हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन
एसोसिएशन’ (Hindustan Socialist Republican Association- HSRA) कर दिया गया
। भारत नौजवान सभा के सभी सदस्यों ने नौजवान
सभा का विलय हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन में किया। इस नये दल के गठन में पंजाब, संयुक्त
प्रान्त आगरा व अवध, बिहार एवं उडीसा आदि अनेक प्रान्तों के क्रान्तिकारी शामिल थे।
हिंदुस्तान
सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन का उद्देश्य भारत
में एक समाजवादी, गणतंत्रवादी राज्य की स्थापना करना था। दल
के तीन विभाग रखे
गये थे - संगठन, प्रचार
और सामरिक संगठन विभाग। संगठन का दायित्व विजय
कुमार सिन्हा, प्रचार का दायित्व भगत
सिंह और सामरिक विभाग
का दायित्व चन्द्र शेखर आजाद को
सौंपा गया था।।
हिन्दुस्तान
सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन के प्रमुख
कार्य:
A. साण्डर्स हत्याकाण्ड:
30 अक्टूबर 1928 को साइमन कमीशन ने लाहौर का दौरा किया। लाला लाजपत राय आयोग के खिलाफ शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व कर रहे थे। पुलिस अधीक्षक जेम्स ए स्कॉट ने लाठीचार्ज का आदेश दिया जिसमे लाला लाजपत राय गंभीर रूप से घायल हो गए। अंततः17 नवम्बर 1928 को लाला लाजपत राय की मृत्यु हो गयी ।
अतः इस दल
(HSRA) ने लाला लाजपत राय की मृत्यु का बदला लेने के लिए स्कॉट को मारने की योजना बनायी,
लेकिन पहचान में गलती हो जाने के कारण स्कॉट की जगह साण्डर्स मारा गया। इस हत्याकाण्ड
को भगत सिंह, सुखदेव व राजगुरु ने अंजाम दिया था।
सहायक पुलिस
अधीक्षक सांडर्स की 17 दिसंबर 1928 को भगत सिंह, चंद्र शेखर आज़ाद तथा राजगुरु द्वारा
की गई हत्या हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन -HSRA की पहली क्रांतिकारी गतिविधि
थी।
B. असेम्बली बम कांड:
सेण्ट्रल
असेम्बली में पब्लिक सेफ्टी
बिल और ट्रेड डिस्प्यूट
बिल पेश हुआ तो
इसके प्रति विरोध प्रदर्शित करते हुए HSRA के
दो सदस्यों भगत सिंह तथा
बटुकेश्वर दत्त ने 8 अप्रैल,
1929 को दिल्ली में केंद्रीय विधानसभा
में खाली बेंचों पर बम फेंका, जिसमे
कोई हताहत नहीं हुआ है।
ये बम जानबूझकर साधारण
प्रकृति का बनाया गया
था। इसका उद्देश्य एचएसआरए
के उद्देश्यों को सबके सामने
उजागर करना था। उन्होंने
भागने का प्रयास नहीं
किया और नारेबाजी करते
हुए गिरफ्तारी दी।
भगत सिंह और
बटुकेश्वर दत्त दोनों को
गिरफ्तार कर केंद्रीय असेंबली
बम कांड के अंतर्गत
मुकदमा चलाया गया। बाद में
इस संगठन के अन्य सदस्यों
को भी गिरफ्तार कर
कुल 16 क्रांतिकारियों के ऊपर लाहौर
षड्यंत्र कांड के अंतर्गत
मुकदमा चलाया गया। भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी की सजा दी गई। इन तीनों
को 23 मार्च, 1931 को फांसी दे दी गई।
गाँधी-इरविनसमझौता,1931 में गाँधीजी ने इनकी फांसी की सजा माफ़ कारवाने का प्रयास किया था लेकिन
वाइसराय ने गाँधीजी की ये मांग अस्वीकार कर दी थी ।
C. अन्य गतिविधियाँ:
दिसंबर
1929 में, एचएसआरए ने वायसराय की विशेष ट्रेन पर बमबारी का असफल प्रयास किया।
Philosophy of Bomb - बम का दर्शन:
भगवती चरण वोहरा
ने Philosophy of Bomb - बम का दर्शन
नाम से
एक प्रसिद्ध पुस्तक की रचना की
थी। यह वह दस्तावेज थे जिसमे क्रान्तिकारियो
द्वारा आम जनता को अपनी विचारधारा से अवगत कराने का प्रयास किया गया था।
एचएसआरए का पतन
भगत सिंह, राजगुरु,
सुखदेव की फांसी तथा चन्द्रशेखर आजाद द्वारा इलाहाबाद में स्वयं के गोली मार लेने के
बाद एसोसियेशन का पतन हो गया।
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