भारत सरकार अधिनियम 1935 | भारत शासन अधिनियम 1935 | Government of India act 1935 in Hindi | Govt of India act 1935 in Hindi

भारत सरकार अधिनियम 1935 | भारत शासन अधिनियम 1935 | Government of India act 1935 in Hindi | Govt of India act 1935 in Hindi 

 

Table of Contents

1. भारत शासन अधिनियम 1935 की पृष्ठभूमि

  • · स्वराज्य दल
  • · साइमन कमीशन
  • · नेहरू रिपोर्ट
  • · गोलमेज सम्मेलन
  • · लार्ड इरविन की घोषणा
  • ·  सविनय अवज्ञा आंदोलन

2. भारत सरकार अधिनियम 1935 /भारत शासन अधिनियम 1935 के प्रावधान

3. भारत सरकार अधिनियम 1935 /भारत शासन अधिनियम 1935 का मूल्यांकन

4. भारत सरकार अधिनियम 1935 /भारत शासन अधिनियम 1935 पर प्रतिक्रिया

5. प्रश्न और उत्तर (QnA)




1. भारत शासन अधिनियम 1935 की पृष्ठभूमि

भारत सरकार अधिनियम, 1935 (Government of India act 1935)  के पारित होने के लिये प्रमुख उत्तरदायी कारक - 

(a) स्वराज्य दल की भूमिका

भारत शासन अधिनियम, 1919 के सुधारों के प्रति भारतीयों में असंतोष बढ़ता जा रहा था। उदारवादी भी इन सुधारों को अपर्याप्त और असंतोषजनक मानने लगे थे। स्वराज्य दल ने इन सुधारों के विरोध में सक्रिय भूमिका निभायी। स्वराज्य दल के गठन का उद्देश्य ही भारत शासन अधिनियम, 1919 के विरोध से जुड़ा हुआ था। स्वराज्य दल का उद्देश्य यह था कि विधानमंडलों में प्रवेश कर इन सुधारों तथा उनसे सम्बद्ध किसी भी संवैधानिक प्रक्रिया को अवरुद्ध किया जाये। 1923 के चुनावों में इस दल को मिली सफलता को स्वराजियों ने विधेयक एवं सरकारी कार्यों के विरोध की ओर मोड़ दिया।

 

(b) साइमन कमीशन की भूमिका

1927 में सरकार ने साइमन कमीशन की नियुक्ति कर अप्रत्यक्ष रूप से यह स्वीकार कर लिया था कि मोंटफोर्ड सुधार (भारत शासन अधिनियम, 1919) असफल रहे हैं। दूसरी तरफ 1923 के चुनावों में कांग्रेस को मिली सफलता से भी सरकार भयभीत थी। लंदन में लार्ड बिरकनहैड भी कमीशन के गठन का श्रेय आगामी उदारवादी सरकार को नहीं देना चाहते थे। साइमन कमीशन की रिपोर्ट में जो सिफारिश की गयी थी, वे अप्रत्यक्ष रूप से भारत शासन अधिनियम, 1919 (मोंटफोर्ड सुधारों) की कमियों तथा कुछ अन्य सुधारों की आवश्यकताओं को रेखांकित कर रही थीं।

 

Also read - साइमन आयोग रिपोर्ट

 

(c) नेहरू रिपोर्ट

नेहरू रिपोर्ट ने साम्प्रदायिक प्रतिनिधित्व व्यवस्था की  आलोचना की तथा उसके स्थान पर अल्पसंख्यकों को जनसंख्या के आधार पर प्रतिनिधित्व देने की मांग की। नेहरू रिपोर्ट ने सम्पूर्ण भारत के लिये एक एकीकृत संविधान की रूपरेखा प्रस्तुत की तथा केंद्र तथा सभी प्रांतों को पूर्ण स्वायत्तता का समर्थन किया।

 

(d) लार्ड इरविन की डोमिनियन स्टेट्स से सम्बद्ध घोषणा

अक्टूबर 1929 में वायसराय ने रैम्जे मैकडोनाल्ड के नेतृत्व में सत्ताधारी श्रमिक सरकार से विचार-विमर्श के उपरांत यह घोषणा की कि भारत में सुधारों का मुख्य लक्ष्य डोमिनियन स्टेट्स प्राप्त करना है। साथ ही लार्ड इरविन ने साइमन कमीशन की रिपोर्ट पर गोलमेज सम्मेलन में समीक्षा किये जाने की घोषणा भी की।

 

(e) गोलमेज सम्मेलनों की भूमिका

1930 से 1932 तक क्रमशः तीन गोलमेज (1930,1931,1932)  सम्मेलन आयोजित किये गये, जिनका मुख्य उद्देश्य भारत में संवैधानिक विकास के मुद्दे पर विचार-विमर्श करना था। किंतु इन गोलमेज सम्मेलनों में कोई विशेष उपलब्धि हासिल नहीं हो सकी।

 

Also read - गोलमेज सम्मेलन

 

(f) सविनय अवज्ञा आंदोलन तथा तत्कालीन अन्य परिस्थितियां

राष्ट्रीय आंदोलन को सरकार दमन का सहारा लेकर दबाने में सफल तो हो गयी किंतु अंग्रेज सरकार को यह अहसास हो गया कि दमन की नीति द्वारा राष्ट्रवादी भावनाओं को ज्यादा दिन तक दबाया नहीं जा सकता। इसलिए अंग्रेज सरकार राष्ट्रीय आंदोलन को स्थायी रूप से कमज़ोर करने पर विचार करने लगी। अंग्रेज सरकार ने कांग्रेस को विभक्त करने के परिप्रेक्ष्य में उसने 1935 का भारत शासन अधिनियम प्रस्तुत किया। अंग्रेजों को उम्मीद थी कि संवैधानिक सुधारों के इस अधिनियम से कांग्रेस के एक खेमे को संतुष्ट एवं औपनिवेशिक प्रशासन में समाहित कर राष्ट्रवादी आंदोलन की बची हुयी शक्ति को दमन से समाप्त कर दिया जायेगा।

 


 

2. भारत सरकार अधिनियम 1935 /भारत शासन अधिनियम 1935 के प्रावधान- GOVERNMENT OF INDIA ACT, 1935

भारत शासन अधिनियम एक लंबा और विस्तृत दस्तावेज़ था, जिसमें 321 धाराएं और 10 अनुसूचियाँ थी। भारत सरकार अधिनियम, 1935 (Government of India act 1935) को ब्रिटिश संसद ने अगस्त 1935 में पारित किया।

 

भारत सरकार अधिनियम 1935 /भारत शासन अधिनियम 1935 के मुख्य प्रावधान निम्नानुसार थे-

1. अखिल भारतीय संघ

भारत शासन अधिनियम 1935 (Government of India act 1935) के अनुसार, इस अखिल भारतीय संघ में सभी ब्रिटिश भारतीय प्रांतों, मुख्य आयुक्त के प्रांतों तथा सभी भारतीय प्रांतों का सम्मिलित होना अनिवार्य था।


देशी रियासतों का सम्मिलित होना वैकल्पिक था। इसके लिये 2 शर्ते थीं-

(i) भारतीय रियासत के प्रतिनिधियों में न्यूनतम आधे प्रतिनिधि चुनने वाली रियासतें संघ में शामिल न हो

(ii) भारतीय रियासतों की कुल जनसंख्या में से आधी जनसंख्या वाली रियासतें संघ में शामिल न हों।


इन सभी रियासतों को जिन शतों पर संघ में सम्मिलित होना था, उनका उल्लेख एक पत्र (instrument of Accession) में किया जाना था। यह संघीय व्यवस्था कभी अस्तित्व में नहीं आई क्योंकि देसी रियासतों ने इस संघ में शामिल होने से इनकार कर दिया तथा केंद्र सरकार 1946 तक, भारत सरकार अधिनियम 1919 के प्रावधानों के अनुसार ही चलती रही।

 


2. संघीय व्यवस्था

A. कार्यपालिका

(i) गवर्नर जनरल केंद्र में समस्त संविधान का केंद्र बिंदु था।


(ii) प्रशासन के विषयों को 2 भागों में विभक्त किया गया-सुरक्षित एवं हस्तांतरित।


सुरक्षित विषयों में-विदेशी मामले, रक्षा, जनजातीय क्षेत्र तथा धार्मिक मामले थे- जिनका प्रशासन गवर्नर-जनरल को कार्यकारी पार्षदों की सलाह पर करना था। कार्यकारी पार्षद, केंद्रीय व्यवस्थापिका के प्रति उत्तरदायी नहीं थे।


हस्तांतरित विषयों में वे सभी अन्य विषय सम्मिलित थे, जो सुरक्षित विषयों में सम्मिलित नहीं थे। हस्तांतरित विषयों का प्रशासन गवर्नर-जनरल को व्यवस्थापिका द्वारा निर्वाचित मंत्रियों की सलाह से करना था। ये मंत्री केंद्रीय व्यवस्थापिका के प्रति उत्तरदायी थे तथा अविश्वास प्रस्ताव पारित होने पर इन मंत्रियों को त्यागपत्र देना अनिवार्य था।

 

(iii) देश की वित्तीय स्थिरता, भारतीय साख की रक्षा, भारत या उसके किसी भाग में शांति की रक्षा, अल्पसंख्यकों, सरकारी सेवकों तथा उनके आश्रितों की रक्षा, अंग्रेजी तथा बर्मी माल के विरुद्ध किसी भेदभाव से उसकी रक्षा, भारतीय राजाओं के हितों तथा सम्मान की रक्षा तथा अपनी निजी विवेकाधीन शक्तियों की रक्षा इत्यादि के संबंध में गवर्नर-जनरल को व्यक्तिगत निर्णय लेने का अधिकार था।

 

 

B. व्यवस्थापिका

संघीय विधान मंडल द्विसदनीय होना था। जिसमें संघीय सभा (निम्न सदन) तथा राज्य परिषद (उच्च सदन) थी।


राज्य परिषद एक स्थायी सदन था, जिसके एक-तिहाई सदस्य प्रत्येक 3 वर्ष के पश्चात चुने जाने थे। इसकी अधिकतम सदस्य संख्या 260 होनी थी, जिसमें से 156 प्रांतों के चुने हुये प्रतिनिधि और अधिकतम 104 रियासतों के प्रतिनिधि होने थे। रियासतों के प्रतिनिधि सम्बद्ध राजाओं द्वारा मनोनीत किया जाना था।


संघीय सभा का कार्यकाल 5 वर्ष होना था। इसके सदस्यों में से 250 प्रांतों के और अधिक से अधिक 125 सदस्य रियासतों के होने थे। ब्रिटिश प्रांतों के सदस्य प्रांतीय विधान परिषदों द्वारा चुने जाने थे जबकि भारतीय रियासतों के सदस्य सम्बद्ध राजाओं द्वारा मनोनीत किये जाने थे।

 

(i) राजाओं को उच्च सदन के 40 प्रतिशत तथा निम्न सदन के 33 प्रतिशत सदस्य मनोनीत करने थे।


(ii) समस्त विषयों का बंटवारा तीन सूचियों- केंद्रीय सूची, राज्य सूची तथा समवर्ती सूची में किया गया।


(iii) संघीय सभा के सदस्य मत्रियों के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव ला सकते थे। किंतु राज्य परिषद में अविश्वास प्रस्ताव नहीं ला जा सकता था।


(iv) धर्म-आधारित एवं जाति-आधारित निर्वाचन व्यवस्था को आगे भी जारी रहने देने की व्यवस्था की गयी।


(v) संघीय बजट का 80 प्रतिशत भाग पर विधानमंडल मताधिकार का प्रयोग नहीं कर सकता था।


(vi) गवर्नर-जनरल के अधिकार अत्यंत विस्तृत थे। वह-

a. अनुदान मांगों में कटौती कर सकता था

b. विधान परिषद द्वारा अस्वीकार किये गये विधेयक का अनुमोदन कर सकता था।

c. अध्यादेश जारी कर सकता था।

d. किसी विधेयक के संबंध में अपने निषेधाधिकार (Veto) का प्रयोग कर सकता था तथा

e. दोनों सदनों का संयुक्त अधिवेशन बुला सकता था।

 

 


3. प्रांतीय स्वायतता

  • प्रांतों को स्वायत्तता प्रदान कर दी गयी।
  • प्रांतों को अलग विधिक पहचान बनाने का अधिकार दिया गया।
  • भारत सचिव एवं गवर्नर-जनरल के आदेशों से प्रान्तों को मुक्त कर दिया गया। इस प्रकार वे प्रत्यक्ष और सीधे तौर पर ब्रिटिश ताज के अधीन आ गये।
  • प्रांतों को स्वतंत्र आर्थिक शक्तियां एवं संसाधन दिये गये। प्रांतीय सरकारें अपनी खुद की साख पर धन उधार ले सकती थीं।


A. कायपालिका

(i) गर्वनर, प्रांत में ताज का मनोनीत प्रतिनिधि होता था, जो ब्रिटिश ताज की ओर से समस्त कार्यों का संचालन एवं नियंत्रण करता था।


(ii) गवर्नर को कानून एवं व्यवस्था, ब्रिटेन के व्यापारिक हितों, अल्पसंख्यकों, लोक सेवकों के अधिकार तथा देशी रियासतों इत्यादि के संबंध में विशेष शक्तियां प्राप्त थीं।


(iii) यदि गवर्नर यह अनुभव करे कि प्रांत का प्रशासन संवैधानिक उपबंधों के आधार पर नहीं चलाया जा रहा है तो शासन का सम्पूर्ण भार वह अपने हाथों में ले सकता था।

 


B. व्यवस्थापिका

(i) साम्प्रदायिक तथा अन्य वर्गो को पृथक प्रतिनिधित्व दिया गया। मतदाता मंडलों का निर्धारण साम्प्रदायिक निर्णय (कम्युनल अवार्ड 1932) तथा पूना पैक्ट 1932 के अनुसार किया गया।

 

Also raed - पूना पैक्ट 1932


(ii) प्रांतीय विधान मंडलों का आकार तथा रचना विभिन्न प्रांतों में अलग-अलग थी। अधिकांश प्रांतों में यह एक सदनीय तथा कुछ प्रांतों में यह द्विसदनीय थी। द्विसदनीय व्यवस्था में विधान परिषद (उच्च सदन) तथा विधान सभा (निम्न सदन) थी।


(iii) सभी सदस्यों का निर्वाचन सीधे तौर पर होता था। मताधिकार में वृद्धि की गयी। पुरुषों के समान महिलाओं को भी मताधिकार प्रदान किया गया।


(iv) सभी प्रांतीय विषयों का संचालन मंत्रियों द्वारा किया जाता था। ये सभी मंत्री एक प्रमुख (मुख्यमंत्री) के अधीन कार्य करते थे।


(v) मंत्री, अपने विभाग के कार्यों के प्रति जवाबदेह थे तथा व्यवस्थापिका में उनके विरुद्ध मतदान कर उन्हें हटाया जा सकता था। प्रांतीय, व्यवस्थापिका-प्रांतीय तथा समवर्ती सूची के विषयों पर कानून बना सकती थी।


(vi) अभी भी बजट का 40 प्रतिशत हिस्सा मताधिकार से बाहर था।


(vii) गवर्नर- 

(क) विधेयक को लौटा सकता था 

(ख) अध्यादेश जारी कर सकता था 

(ग) सरकारी कानूनों पर रोक लगा सकता था।

 

 


4. 1935 के अधिनियम की अन्य धारायें

(i) संघीय न्यायालय की स्थापना।


(ii) नया संविधान अनम्य (Rigid) था। इसमें संशोधन करने की शक्ति केवल अंग्रेजी संसद को ही थी। भारतीय विधानमंडल केवल उसमें संशोधन का प्रस्ताव कर सकता था।


(iii) एक केंद्रीय बैंक (Reserve Bank of India) की स्थापना की गयी।


(iv) बर्मा तथा अदन को भारत के शासन से पृथक कर दिया गया।


(v) उड़ीसा और सिंध दो नये प्रांत बनाये गये तथा उत्तर-पश्चिम सीमांत प्रांत को गवर्नर के अधीन रख दिया गया।

 

 


3. भारत सरकार अधिनियम 1935 /भारत शासन अधिनियम 1935 का मूल्यांकन

(i). इसने गवर्नर जनरल को विशेष उत्तरदायित्व तथा स्वविवेकी शक्तियाँ सौंपी, जिससे इस अधिनियम के वास्तविक क्रियान्वयन में रुकावटें आयीं।

 

(ii). इसने प्रांतों में भी गवर्नर को असीमित अधिकार दिये थे।

 

(iii). पृथक साम्प्रदायिक निर्वाचन क्षेत्रों की व्यवस्था ने कालांतर में साम्प्रदायिकता को उभारा तथा अंततः भारत को 1947 का विभाजन देखना पड़ा।

 

(iv). इस अधिनियम ने एक अनम्य संविधान प्रस्तुत किया, जिसमें आंतरिक विकास की संभावना न के बराबर थी। संविधान संशोधन की शक्ति ब्रिटिश संसद में निहित होना भी एक बड़ा दोष था।

 

(v). भारत सरकार अधिनियम 1935 (Government of India act 1935) की संघीय व्यवस्था दोषपूर्ण थी। संघ में शामिल होने या न होने का निर्णय देशी रियासतों की इच्छा पर छोड़ दिया गया था। इसलिये संघ निर्माण की अवधारणा कभी पूरी नहीं हो सकी।

 

(vi). इस अधिनियम ने केंद्र पर द्वैध शासन लागू  किया। जिसे  द्वैध शासन को साइमन कमीशन ने दोषपूर्ण बताया था।

 

vii). भारत सरकार अधिनियम 1935 (Government of India act 1935) में भारत के राष्ट्रीय हितों की उपेक्षा की गयी।

 

(viii). भारत सरकार अधिनियम 1935 (Government of India act 1935) में ‘प्रांतीय स्वायत्तता नाम मात्र की ही थी।

 

(ix). 1935 का अधिनियम दो बातों से 1919 के भारत सरकार अधिनियम से अच्छा था। प्रथम, तो इसमे प्रांतो के द्वैध शासन के स्थान पर पूर्ण उत्तदायी शासन की व्यवस्था की गई। दूसरे, केन्द्र मे आंशिक उत्तरदायित्व की स्थापना का प्रस्ताव किया गया।

 

(x). इसके अतिरिक्त विधान सभाओं के सदस्यों की संख्या मे भी वृद्धि की गई तथा मताधिकार का भी विस्तार किया गया।

 


 

4. भारत सरकार अधिनियम 1935 /भारत शासन अधिनियम 1935 पर प्रतिक्रिया

1935 के अधिनियम का भारतीयों ने पूरी तरह से विरोध किया। कांग्रेस ने इसे नामंजूर कर दिया। कांग्रेस ने स्वतंत्र भारत के लिये संविधान बनाये जाने की मांग की। कांग्रेस ने मांग कि अतिशीघ्र एक संविधान सभा का गठन किया जाए तथा इसके सदस्यों का निर्वाचन व्यस्क मताधिकार पर हो।

 

 


5. प्रश्न और उत्तर (QnA)

Q. भारत सरकार अधिनियम 1935 पास कब हुआ?/ भारत सरकार अधिनियम कब पारित हुआ था?/ अंग्रेजी संसद में भारत सरकार अधिनियम कब पारित हुआ?

A. भारत सरकार अधिनियम, 1935 (Government of India act 1935) को ब्रिटिश संसद ने अगस्त 1935 में पारित किया।

 

Q. भारत सरकार अधिनियम 1935 के अंतर्गत पहली बार चुनाव कब हुए?

A. भारत सरकार अधिनियम 1935 के अंतर्गत पहली बार चुनाव सन् 1937 में हुआ था।

 

Q. द्वैध शासन के जनक कौन है?

A. द्वैध शासन का जनक लियो कार्टिस को माना जाता है। प्रांतों में द्वैध शासन के जनक रॉबर्ट क्लाइव को कहा जाता है।

 

Q. द्वैध शासन की शुरुआत कब हुई?

A. द्वैध शासन की शुरुआत बंगाल में 1765 . में हुई थी।

 

Q. भारत शासन अधिनियम 1935 में कितनी धाराएं थी?/भारत शासन अधिनियम 1935 में कितनी धाराएं थी?/ भारत शासन अधिनियम 1935 में 14 भाग 10 अनुसूचियां व कितनी धाराएं शामिल थी?

A.  भारत शासन अधिनियम 1935 में 321 धाराएं थी।

 

Q. सन 1935 मे भारत सरकार अधिनियम के अनुसार प्रांतों में मंत्रिमंडल कब स्थापित हुआ?

A. सन 1935 मे भारत सरकार अधिनियम के अनुसार प्रांतों में मंत्रिमंडल 1937 में स्थापित हुआ।

 

Q. भारत सरकार अधिनियम 1935 किस पर आधारित था? (the government of india act 1935 was based on?)

A. भारत सरकार अधिनियम 1935 साइमन कमीशन की रिपोर्ट 1930 पर आधारित था।

Government of India act 1935 in Hindi
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