Lucknow Pact 1916 in Hindi | Lucknow adhiveshan 1916

कांग्रेस का लखनऊ अधिवेशन 1916 | लखनऊ समझौता 1916 

Table of Contents

1. लखनऊ अधिवेशन/लखनऊ समझौते, 1916 की पृष्ठभूमि

  • गरमपंथी और नरमपंथी विवाद का अंत 
  • कांग्रेस और मुस्लिम लीग का समीप आना

2. लखनऊ अधिवेशन/ लखनऊ समझौता, 1916

  •    लखनऊ समझौते, 1916 के प्रावधान

3. कांग्रेस और मुस्लिम लीग की अंग्रेजों के सामने साझा मांगें

4. लखनऊ अधिवेशन/लखनऊ समझौते, 1916 का महत्त्व

5. लखनऊ अधिवेशन/लखनऊ समझौते, 1916 के नकारात्मक पहलू

6. प्रश्न और उत्तर (QnA)

 

 

1. लखनऊ अधिवेशन/लखनऊ समझौते, 1916 की पृष्ठभूमि

गरमपंथी और नरमपंथी विवाद का अंत 

कांग्रेस के नरमपंथियों और गरमपंथियों में फूट 1907 के सूरत अधिवेशन में पड़ी थी। कांग्रेस के गरमपंथी और नरमपंथी दोनों पक्षों को यह आभास हो गया था कि पुराने विवादों की अब कोई प्रासिंगता नहीं रह गई है। गरमपंथी और नरमपंथी के आपसी मतभेदों से राष्ट्रीय आन्दोलन की प्रगति में बाधा उत्पन्न हो रही है।


दो प्रमुख उदारवादी नेता, गोपाल कृष्ण गोखले तथा फिरोजशाह मेहता गरमपंथियों के कट्टर विरोधी थे तथा किसी भी परिस्थिति में गरमपंथियों से समझौता नहीं करना चाहते थे। अब तक गोपाल कृष्ण गोखले तथा फिरोजशाह मेहता की मृत्यु हो चुकी थी। अतः इन दोनों की मृत्यु के बाद  कांग्रेस में गरमपंथियों के प्रवेश के रास्ते खुल गए।


इसके अतिरिक्त एनी बेसेंट भी गरमपंथी नेताओं तिलक और उनके सथियों को कांग्रेस में पुनः प्रवेश दिलवाने के लिए प्रयास कर रही थी।

 

 

कांग्रेस और मुस्लिम लीग का समीप आना

  1. 1912-13 के बाल्कन युद्ध में ब्रिटेन ने तुर्की की मदद करने से इनकार कर दिया था। बाल्कन युद्ध के कारण यूरोप में तुर्की की शक्ति बहुत कम हो गई तथा तुर्की का सीमा क्षेत्र संकुचित हो गया। तुर्की के शासक का दावा था कि वह सभी मुसलमानों का ‘खलीफा है। अतः भारतीय मुसलमानों की सहानुभूति तुर्की के साथ थी। ब्रिटेन द्वारा युद्ध में तुर्की को सहयोग न दिये जाने से भारतीय मुसलमान नाराज हो गए। परिणामस्वरूप ‘मुस्लिम लीग ने कांग्रेस को सहयोग देने  का निश्चय किया, जो अंग्रेजो के विरूद्ध स्वतंत्रता आंदोलन चला रही थी।
  2. ब्रिटिश सरकार द्वारा अलीगढ़ में विश्वविद्यालय की स्थापना करने एवं उसे सरकारी सहायता देने से इनकार करने पर शिक्षित मुसलमान नाराज हो गए थे।
  3. बंगाल विभाजन को रद्द करने से उन मुसलमानों को अत्यधिक निराशा हुई जिन्होंने 1905 में इस विभाजन का समर्थन किया था।
  4. मुस्लिम लीग के युवा समर्थक धीरे-धीरे सशक्त राष्ट्रवादी राजनीति की ओर उन्मुख हो रहे थे। 1912 में लीग का अधिवेशन कलकत्ता में हुआ। इस अधिवेशन में मुस्लिम लीग ने निश्चय किया कि वह भारत में अनुकूल ‘स्वशासन की स्थापना में किसी अन्य दल का सहयोग कर सकता है, बशर्ते यह भारतीय मुसलमानों के हितों को नुकसान न पहुचाये तथा भारतीय मुसलमानों के हित सुरक्षित बने रहे। इससे कांग्रेस व लीग दोनों की ‘स्वशासन की मांग एक जैसी हो गई, जिससे कांग्रेस व लीग को समीप आने में सहायता मिली।
  5. प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान अंग्रेज सरकार की दमनकारी नीतियों से युवा मुसलमानों में भय का वातावरण व्याप्त हो गया था। मौलाना अबुल कलाम आजाद के पत्र ‘अल हिलाल तथा मोहम्मद अली के पत्र ‘कामरेड को सरकारी दमन का सामना करना पड़ा तथा वहीं दूसरी ओर अली बंधुओं, मौलाना आजाद तथा हसरत मोहानी जैसे नेताओं को नजरबंद कर दिया गया। सरकार की इन नीतियों से लीग के युवा सदस्यों में साम्राज्यवाद विरोधी भावनाएँ जागृत हो गई और वे उपनिवेशी शासन को समूल नष्ट करने के अवसर खोजने लगे।

 

इन कारकों ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस व मुस्लिम लीग में एकीकरण को संभव बनाने में योगदान दिया। 

 

 

2. लखनऊ अधिवेशन/लखनऊ समझौता, 1916

कांग्रेस का लखनऊ अधिवेशन (Lucknow adhiveshan) वर्ष 1916 में 26 से 30 दिसंबर के बीच हुआ था। यह काग्रेस का 31वें अधिवेशन था। इसकी अध्यक्षता उदारवादी (नरमपंथी) नेता अम्बिका चरण मजुमदार ने की थी। गरमपंथियों (अतिवादियों) को कांग्रेस में पुनः शामिल किया जाना तथा मुस्लिम लीग के साथ समझौता इस अधिवेशन की प्रमुख उपलब्धि थी।


काग्रेस और मुस्लिम लीग के बीच समझौते को लखनऊ समझौता या लखनऊ पैक्ट (Lucknow Pact) या लीग-कांग्रेस समझौता के नाम से जानते हैं। भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस द्वारा लखनऊ समझौता 29 दिसम्बर 1916 को और 31 दिसम्बर 1916 को अखिल भारतीय मुस्लिम लीग द्वारा पारित किया गया। इस लखनऊ समझौते में एनी बेसेंट, बाल गंगाधर तिलक और मुहम्मद अली जिन्ना ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।


*मदन मोहन मालवीय ने लखनऊ समझौता का विरोध किया था।

 

 

लखनऊ समझौते, 1916 के प्रावधान


1. काग्रेस द्वारा उत्तरदायी शासन की माँग को मुस्लिम लीग ने स्वीकार कर लिया।


2. काग्रेस ने मुस्लिम लीग की मुसलमानों के लिए पृथक निर्वाचन व्यवस्था की माँग को स्वीकार कर लिया


3. प्रांतीय व्यवस्थापिका सभाओं में निर्वाचित भारतीय सदस्यों के संख्या का एक निश्चित भाग मुसलमानो के लिए आरक्षित कर दिया गया। पंजाब में 50%, बंगाल में 40%, बम्बई सहित सिंध में 33%, संयुक्त प्रान्त में 30%, बिहार में 25%, मध्य प्रदेश में 15%  तथा मद्रास में भी 15% सीटें मुस्लिम लीग को दी गयीं।


4. केंद्रीय व्यवस्थापिका सभा में कुल निर्वाचित भारतीय सदस्यों का 1/9 भाग मुसलमानों के लिये आरक्षित किया गया तथा इनके निर्वाचन हेतु साम्प्रदायिक चुनाव व्यवस्था स्वीकार की गयी।


5. यह निश्चित किया गया कि यदि किसी सभा में कोई प्रस्ताव किसी सम्प्रदाय के हितों के विरुद्ध हो तथा 3/4 सदस्य उस आधार पर उसका विरोध करें तो उसे पास नहीं किया जायेगा।

 

 

3. कांग्रेस और मुस्लिम लीग की अंग्रेजों के सामने साझा मांगें

कांग्रेस और मुस्लिम लीग द्वारा सरकार के समक्ष निम्नलिखित साझा माँगें (19 सूत्रीय ज्ञापन पत्र) प्रस्तुत की गईं

1. ब्रिटिश सरकार भारत को उत्तरदायित्वपूर्ण शासन देने की जल्द से जल्द घोषणा करे।

2. केन्द्रीय विधान परिषदों, प्रांतीय विधान परिषदों तथा में निर्वाचित भारतीयों की संख्या बढ़ाई जाये तथा उन्हें और अधिक अधिकार दिए जाये।

3. गवर्नर-जनरल की कार्यकारिणी परिषद् का विस्तार किया जाए तथा परिषद में आधे से ज्यादा सदस्य भारतीय हों।

4. विधान परिषदों के कार्यकाल की अवधि 5 वर्ष होनी चाहिए।

5. जिन कानूनों/प्रस्तावों को परिषदों में बड़ी बहुमत से पारित किया जाये, उन्हें ब्रिटिश सरकार द्वारा बाध्यकारी के रूप में स्वीकार किया जाना चाहिए।

6. प्रांतों में अल्पसंख्यकों की रक्षा की जानी चाहिए।

7. सभी प्रांतों को स्वायत्तता दी जानी चाहिए।

8. कार्यपालिका को न्यायपालिका से अलग करना

9. विधान परिषद में निर्वाचित सदस्यों का बहुमत हो

 

 

4. लखनऊ अधिवेशन/लखनऊ समझौते, 1916 का महत्त्व

  • कांग्रेस एवं मुस्लिम लीग के बीच सहयोगात्मक समझौता सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि थी। लखनऊ समझौते से मुस्लिम लीग और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के बीच सौहार्दपूर्ण संबंध स्थापित किए।
  • लखनऊ समझौते (Lucknow adhiveshan) से हिंदू-मुस्लिम एकता एकता की नई भावना का विकास हुआ ।
  • लखनऊ समझौते के बाद स्थापित हिंदू-मुस्लिम एकता को अंग्रेज सरकार ने भी गम्भीरता से लिया। इसी के फलस्वरूप अगस्त 1917 में “मोंटेग्यू घोषणा” सार्वजनिक की  गयी ।

 

 

5. लखनऊ अधिवेशन/लखनऊ समझौते, 1916 के नकारात्मक पहलू

  • इस समझौते से ही कांग्रेस ने मुसलामानों के लिए पृथक् निर्वाचन की माँग स्वीकार कर भावी राजनीति के लिए साम्प्रदायिकता का बीज बोया
  • लखनऊ समझौते के परिणामस्वरूप द्वि-राष्ट्र सिद्धांत का सूत्रपात हुआ।
  • असहयोग आन्दोलन के स्थगित होते ही यह समझौता भंग हो गया
  • लखनऊ समझौते (Lucknow adhiveshan)  में हिन्दू और मुस्लिम दोनों सम्प्रदायों के लोगो को साथ लाने का कोई प्रयास नहीं  किया गया

 

 

6. प्रश्न और उत्तर (QnA)

Q. 1916 में हुए भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के लखनऊ अधिवेशन की अध्यक्षता किसने की थी?

A. 1916 में हुए भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के लखनऊ अधिवेशन (Lucknow adhiveshan ) की अध्यक्षता उदारवादी (नरमपंथी) नेता अम्बिका चरण मजुमदार ने की थी।

 

Q. सन 1916 में कांग्रेस और मुस्लिम लीग के बीच किस नगर में समझौता हुआ था?

A. सन 1916 में कांग्रेस और मुस्लिम लीग के बीच लखनऊ में समझौता हुआ था।

 

Q. कांग्रेस का एकीकरण कब हुआ?/ 1916 में क्या हुआ था?

A. कांग्रेस का एकीकरण लखनऊ अधिवेशन, 1916 में हुआ था।

 

Q. लखनऊ समझौते में किसने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी?

A. इस लखनऊ समझौते में एनी बेसेंट, बाल गंगाधर तिलक और मुहम्मद अली जिन्ना ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

 

Q. किसने लखनऊ समझौता,1916 का विरोध किया था?

A. मदन मोहन मालवीय ने लखनऊ समझौता का विरोध किया था।


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