Asahyog Andolan | असहयोग आन्दोलन | Non-Cooperation Movement in Hindi | Asahyog Andolan kab hua tha?


Table of Contents

1. असहयोग आन्दोलन की पृष्ठभूमि

  • ·  रॉलेट एक्ट,1919 
  • ·  जालियाँवाला बाग हत्याकांड
  • ·  पंजाब में मार्शल लॉ
  • ·  हंटर आयोग
  • ·  मोंटेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधार
  • ·  आर्थिक कठिनाइयाँ
  • ·  खिलाफत का मुद्दा

2. असहयोग आन्दोलन की शुरुआत

  • ·  कांग्रेस का कलकत्ता अधिवेशन
  • ·  कांग्रेस का नागपुर अधिवेशन

3. असहयोग आन्दोलन की प्रगति

  • ·  शिक्षा संस्थाओं का बहिष्कार
  • ·  वकालत का बहिष्कार
  • ·  तिलक स्वराज्य फ़ण्ड
  • ·  प्रिन्स ऑफ़ वेल्स का बहिष्कार

4. असहयोग आंदोलन के प्रति लोगों की प्रतिक्रिया

5. अंग्रेज सरकार की प्रतिक्रिया

6.असहयोग आन्दोलन समाप्ति का निर्णय

  • ·  चौरी-चौरा काण्ड
  • ·  गाँधी जी की गिरफ्तारी

7. असहयोग आंदोलन को वापस लेने का कारण

8. असहयोग आंदोलन की सफलताएं - उपलब्धियां

9. असहयोग आंदोलन से जुड़े व्यक्तित्व

10. FAQ

 

 

1. असहयोग आन्दोलन (Asahyog Andolan) की पृष्ठभूमि | असहयोग आन्दोलन (Non Cooperation Movement) के कारण

 

I. रॉलेट एक्ट, 1919 (Rowlatt Act, 1919)

सर सिडनी रौलेट की अध्यक्षता वाली सेडिशन समिति की शिफारिशों के आधार पर बनाया गया रॉलेट एक्ट, बिना वारंट के तलाशी, गिरफ़्तारी तथा बंदी प्रत्यक्षीकरण के अधिकार को रद्द करने की शक्ति आदि असाधारण शक्तियां सरकार को दे दी गयी। रॉलेट एक्ट को भारतवासियों ने "काला कानून" कहा और इसके विरुद्ध तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की।


 

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II. जालियाँवाला बाग हत्याकांड (Jallianwala Bagh Massacre)

13, अप्रैल 1919 में अमृतसर में एक अंग्रेज ब्रिगेडियर जनरल डायर ने जलियांवाला बाग में एकत्रित लोगों की एक राष्ट्रवादी सभा पर गोली चलाने का आदेश दिया। जिनमें सैकड़ों लोग मारे गए। हाउस ऑफ लॉर्ड्स (ब्रिटिश संसद के) में जलियांवाला बाग हत्याकांड को लेकर जनरल डायर की कार्रवाई को उचित ठराया जाना। अंग्रेजो की इस हरकत से भारतीयों में आक्रोश की लहर दौड़ गयी।

 

 

III. पंजाब में मार्शल लॉ

पंजाब में मार्शल लॉ लागू  करके कठोरता से कार्यवाई की गयी, जिससे अंग्रेजो का असली चेहरा लोगो के सामने अनावृत  गया।

 

 

IV. हंटर आयोग (Hunter Commission)

पंजाब में हो रहे अत्याचारों की जाँच हेतु गठित हंटर आयोग (Hunter Commission) की भेदभावपूर्ण जाँच और पक्षपातपूर्ण रिपोर्ट ने लोगो में रोष उत्त्पन्न कर दिया ।

 

 

V. मोंटेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधार (Montagu-Chelmsford Reforms)

मोंटेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधार का मकसद भी दोहरी शासन प्रणाली लागू करना था, ना कि जनता को राहत देना इससे भी असंतोष और उभरा

 

 

VI. आर्थिक कठिनाइयाँ

प्रथम विश्व युद्ध के बाद वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि, भारतीय उद्योगों के उत्पादन में कमी, करों और किराये के बोझ में वृद्धि, रक्षा व्यय में भारी वृद्धि, सीमा शुल्क में वृद्धि आदि के कारण जनता त्रस्त हो गयी।


भारत में कई स्थानों में फसल खराब होने के कारण खाद्यान्नों की भारी कमी हो गई। सूखे, महामारी, प्लेग से भी हजारों लोग मारे गए। युद्ध समाप्त होने के बाद भी अंग्रेजों द्वारा कोई मदद नहीं की गई। इससे लोगों में ब्रिटिश विरोधी भावनाएं जागृत हुई।

 

 

VII. खिलाफत का मुद्दा

प्रथम विश्व युद्ध के दौरान तुर्की ने अंग्रेजों के खिलाफ जर्मनी और ऑस्ट्रिया का साथ दिया था। भारत सहित विश्व भर के मुसलमान तुर्की के सुल्तान को अपना आध्यात्मिक नेता (खलीफा) मानते थे। प्रथम विश्व युद्ध में मुसलमानों का सहयोग लेने के लिए अंग्रेजों ने तुर्की के प्रति उदार रवैया अपनाने का वादा किया था। अतः भारतीय मुसलमानों ने प्रथम विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटिश सरकार का समर्थन किया। लेकिन बाद में अंग्रेज अपनी बात से मुकर गए


प्रथम विश्व युद्ध के बाद  तुर्क साम्राज्य विभाजित कर दिया गया तथा खलीफा को सत्ता से हटा दिया गया था। इससे मुस्लिम नाराज हो गए तथा इसे खलीफा का अपमान माना। शौकत अली और मोहम्मद अली ने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ खिलाफत आंदोलन को शुरू कर दिया। वर्ष 1919 में अली बंदुओं, मौलाना अबुल कलाम आज़ाद, अजमल खान और हसरत मोहानी के नेतृत्व में अखिल भारतीय खिलाफत समिति का गठन किया गया था, ताकि ब्रिटिश सरकार को तुर्की के प्रति अपना रवैया बदलने हेतु मजबूर किया जा सके। इस प्रकार देशव्यापी आंदोलन हेतु एक आधार निर्मित किया गया।


नवंबर 1919 में दिल्ली में अखिल भारतीय खिलाफत सम्मेलन आयोजित किया गया, जिसमे ब्रिटिश सामानों के बहिष्कार का आह्वान किया गया।

 

भारत में मुसलमानों ने अंग्रेजों से निम्नलिखित माँगें की:

  • · मुस्लिम पवित्र स्थानों पर खलीफा का नियंत्रण बरकरार रखा जाना चाहिये।
  • · क्षेत्रीय व्यवस्था के बाद खलीफा को पर्याप्त क्षेत्र दिया जाना चाहिये।

 

कॉन्ग्रेस और खिलाफत आंदोलन

खिलाफत आंदोलन को सफल बनाने हेतु कॉन्ग्रेस का सहयोग आवश्यक था। महात्मा गांधी खिलाफत के मुद्दे पर सरकार के खिलाफ आंदोलन शुरू करने के पक्ष में थे, लेकिन कॉन्ग्रेस इस तरह की राजनीतिक कार्रवाई पर सहमत नहीं थी।


बाद में कॉन्ग्रेस ने अपना समर्थन देने का फैसला किया क्योंकि यह हिंदुओं और मुसलमानों को एकजुट करने और ऐसे जन आंदोलनों में मुस्लिम भागीदारी को शामिल करने का एक सुनहरा अवसर था। मुस्लिम लीग ने भी राजनीतिक सवालों पर कॉन्ग्रेस और उसके आंदोलन को पूर्ण  समर्थन देने का फैसला किया गया।

 



2. असहयोग आन्दोलन (Asahyog Andolan) की शुरुआत

1 अगस्त 1920 को औपचारिक रूप से असहयोग आंदोलन (Non Cooperation Movement)  की शुरुआत की गई। इसी दिन बाल गंगाधर तिलक का निधन हो गया।

 

I. कांग्रेस का कलकत्ता अधिवेशन, 1920

कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में 4 सितंबर 1920 को असहयोग आंदोलन का प्रस्ताव पारित हुआ। इस अधिवेशन की अध्यक्षता लाला लाजपत राय ने की। कलकत्ता अधिवेशन में कांग्रेस ने पहली बार भारत में विदेशी शासन के विरुद्ध सीधी कार्रवाई करने, विधान परिषदों का बहिष्कार करने तथा असहयोग आन्दोलन को प्रारम्भ करने का निर्णय लिया।

 

इस अधिवेशन में कांग्रेस ने निम्न कार्यक्रम तय किए-

  • ·  सरकारी शिक्षण संस्थाओं का बहिष्कार,
  • ·  न्यायालयों का बहिष्कार और पंचायतों के माध्यम से न्यायिक कार्य,
  • ·  विधान परिषदों का बहिष्कार,
  • ·  विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार,
  • ·  विदेशी वस्तुओं के स्थान पर खादी के उपयोग को बढ़ावा ,
  • ·  चरखा कातने को प्रोत्साह
  • ·  सरकारी उपाधियों तथा अवैतनिक पदों का परित्याग ,
  • ·  सरकारी सेवाओं का परित्याग ,
  • ·  सरकारी करों का भुगतान न करना ,
  • ·  सरकारी तथा अर्ध सरकारी उत्सवों का बहिष्कार,
  • ·  सैनिक, मजदूर तथा कर्मचारियों का मैसोपोटामिया में कार्य करने के लिए ना जाना,

·          

Note- विधान परिषदों के बहिष्कार के प्रस्ताव पर चित्तरंजन दास (C.R. Das) सहमत नहीं थे।

 

 

II. कांग्रेस का नागपुर अधिवेशन, 1920

इस अधिवेशन में-

  • ·  असहयोग आन्दोलन के प्रस्ताव की पुष्टि कर दी गई ।
  • ·  कांग्रेस के सिद्धांत में एक महत्वपूर्ण परिवर्तन हुआ : कांग्रेस ने संवैधानिक तरीके से स्वशासन प्राप्ति के अपने लक्ष्य के स्थान पर शांतिपूर्ण एवं न्याय उचित तरीके से स्वराज्य प्राप्ति को अपना लक्ष्य घोषित किया। इस प्रकार कांग्रेश ने संवैधानिक दायरे से बाहर जन संघर्ष की अवधारणा को स्वीकार किया।
  • ·  कुछ महत्वपूर्ण संगठनात्मक परिवर्तन भी किए गए : अब कांग्रेस के रोजमर्रा के क्रियाकलापों को देखने के लिए 15 सदस्यीय  कार्यकारिणी समिति गठित की गई। स्थानीय स्तर पर कार्यक्रमों के वास्तविक क्रियान्वयन के लिए भाषाई आधार पर प्रदेश कांग्रेस कमेटियों का गठन किया गया गांव और कस्बों में भी कांग्रेसी समितियों का गठन किया गया। सदस्यता फीस 4 आना साल कर दी गई
  • ·  गांधी जी ने घोषणा की कि यदि पूरी तन्मयता से असहयोग आंदोलन चलाया गया तो 1 वर्ष के भीतर स्वराज का लक्ष्य प्राप्त हो जाएगा।

क्रांतिकारी आतंकवादियों के कई संगठनों मुख्य का बंगाल के क्रांतिकारी संगठनों ने कांग्रेस के कार्यक्रम को पूर्ण समर्थन देने की घोषणा की। इसी दौरान ऐनी बेसेन्ट, मोहम्मद अली जिन्ना एवं B. C. Pal जैसे नेता कांग्रेस छोड़कर चले गए। क्योंकि वह संवैधानिक एवं न्याय पूर्ण ढंग से संघर्ष चलाए जाने के पक्षधर थे ।


Note- नागपुर कांग्रेस अधिवेशन में असहयोग प्रस्ताव के विधान परिषदों के बहिष्कार से सम्बन्धित लाला लाजपत राय एवं चित्तरंजन दास ने अपना विरोध वापस ले लिया।

 

 

 

3. असहयोगआन्दोलन (Non Cooperation Movement) की प्रगति और प्रसार

Non Cooperation Movement आन्दोलन शुरू करने से पहले गांधी जी ने "कैसर--हिन्द" की सरकारी उपाधि को लौटा दिया। यह उपाधि गांधी जी को प्रथम विश्व युद्ध के दौरान अंग्रेज सरकार द्वारा दी गई थी। गांधी जी ने असहयोग आन्दोलन 1 अगस्त, 1920 को आरम्भ किया। पश्चिमी भारत, बंगाल तथा उत्तरी भारत में असहयोग आन्दोलन को अभूतपूर्व सफलता मिली।

 

I. शिक्षा संस्थाओं का बहिष्कार

असहयोग आन्दोलन के दौरान शिक्षा संस्थाओं का सर्वाधिक बहिष्कार बंगाल में हुआ। विद्यार्थियों के अध्ययन के लिए अनेक शिक्षण संस्थाएँ जैसे काशी विद्यापीठ, बिहार विद्यापीठ, गुजरात विद्यापीठ, बनारस विद्यापीठ, तिलक महाराष्ट्र विद्यापीठ एवं अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय आदि स्थापित की गईं। सुभाषचन्द्र बोस 'नेशनल कॉलेज कलकत्ता' के प्रधानाचार्य बने। पंजाब में लाला लाजपत राय के नेतृत्व में बहिष्कार किया गया।

 

II. वकालत का बहिष्कार

वकालत का बहिष्कार करने वाले वकीलों में प्रमुख थे-

  • ·  बंगाल के देशबन्धु चित्तरंजन दास (C.R. Das),
  • ·  उत्तर प्रदेश के मोतीलाल नेहरू एवं जवाहरलाल नेहरू,
  • ·  गुजरात के विट्ठलभाई पटेल एवं वल्लभ भाई पटेल,
  • ·  बिहार के राजेन्द्र प्रसाद,
  • ·  मद्रास के चक्रवर्ती राजगोपालाचारी
  • ·  दिल्ली के आसफ़ अली आदि।

 

मुस्लिम नेताओं में असहयोग में सर्वाधिक योगदान देने वाले नेता थे-

  • ·  डॉक्टर अन्सारी,
  • ·  मौलाना अबुल कलाम आज़ाद,
  • ·  शौक़त अली,
  • ·  मुहम्मद अली आदि।

 

Note - मुहम्मद अली पहले नेता थे, जिन्हें सर्वप्रथम 'असहयोग आन्दोलन' में गिरफ़्तार किया गया।

 


III. तिलक स्वराज्य फ़ण्ड

गांधी जी के आह्वान पर तिलक स्वराज्य फ़ण्ड की स्थापना की गई, जिसमें एक करोड़ से अधिक रुपये जमा किये गए।

 


IV. प्रिन्स ऑफ़ वेल्स का बहिष्कार

17 November, 1921 में प्रिन्स ऑफ़ वेल्स के भारत आगमन पर विभिन्न स्थानों पर हड़तालों और विरोध प्रदर्शनो का आयोजन किया गया। प्रिन्स ऑफ़ वेल्स का सर्वत्र काला झण्डा दिखाकर स्वागत किया गया।


इसके बाद पूरे मुंबई समेत कई स्थानों पर हिंसक वारदातें तथा पुलिस के साथ झड़पें हुई । गांधी जी की सभा से लौटने वालों और प्रिंस के स्वागत समारोह में भाग लेने वालों में संघर्ष हो गया इसके ज्यादातर शिकार पारसी, ईसाई और एंग्लो इंडियन हुए हिंसा और पुलिस द्वारा गोली चलाए जाने में 58 व्यक्ति मारे गए

 


V. कई स्थानीय आंदोलनों ने इसमें और उर्जा भर दी इसमें –

  • ·    अवध किसान आंदोलन (उत्तर प्रदेश),
  • ·  एका आंदोलन (उत्तर प्रदेश),
  • ·  मोपला विद्रोह (मालाबार)
  • ·  पंजाब से महंतों के निष्कासन की मांग को लेकर चलाया गया सिक्खों का आंदोलन ।
  • ·  असम में चाय बागान मजदूर हड़ताल,
  • ·  असम-बंगाल रेलवे कर्मचारियों की हड़ताल,
  • ·  आंध्र में वन कानून के खिलाफ आंदोलन,
  • ·  राजस्थान में किसानों और आदिवासियों का आंदोलन आदि प्रमुख हैं।

 

 


4. असहयोग आंदोलन के प्रति लोगों की प्रतिक्रिया

  1. छात्र: हजारों छात्रों ने सरकार द्वारा स्थापित स्कूलों और कॉलेजों को छोड़ दिया और राष्ट्रीय कॉलेजों में दाखिला ले लिया। साथ हीबड़ी संख्या में आंदोलन में शामिल हो गए।
  2. व्यवसायी वर्ग: विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार में व्यवसाई वर्ग का भरपूर सहयोग मिला और उन्होंने स्वदेशी वस्तुओं का समर्थन किया।
  3. कृषक वर्ग: असहयोग आंदोलन में किसानों की बड़ी संख्या में भागीदारी देखी गई थी।
  4. महिलाएं: महिलाओं ने बड़ी संख्या में असहयोग आंदोलन में भाग लिया। महिलाओं द्वारा विदेशी कपड़ों, शराब की दुकानों के सामने धरना प्रदर्शन में सक्रिय रूप से भाग लिया गया।
  5. मुसलमान: खिलाफत आंदोलन के कारण मुसलमानों ने असहयोग आंदोलन में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया।

 



5. असहयोग आंदोलन के प्रति अंग्रेज सरकार की प्रतिक्रिया

1. मई 1921 में नए वायसराय लॉर्ड रीडिंग ने गांधी जी से मुलाकात की और गांधी जी से कहा कि वह अली बंधुओं को अपने भाषणों में हिंसा भड़काने वाली बातें ना कहने के लिए बोले । सरकार का उद्देश्य था कि गांधीजी और अली बंधुओं में आपसी फूट डालना, लेकिन वह इसमें असफल हुई और गांधी-रीडिंग वार्तालाप यहीं पर समाप्त हुआ।


2. सरकार ने अपनी नीतियों में परिवर्तन की घोषणा की। स्वयंसेवी संगठनों को गैरकानूनी घोषित किया गया और इसके सदस्यों को गिरफ्तार किया जाने लगा । सबसे पहले सीआर दास को गिरफ्तार किया गया और बाद में उनकी पत्नी बसंती देवी को ।


3. दिसंबर के मध्य में मालवीय जी के माध्यम से बातचीत करके मामला सुलझाने की कोशिश की गई, पर इसके साथ जो शर्ते जुड़ी थी, खिलाफत आंदोलन के हितों के विरुद्ध थी । अतः गांधीजी ने इसे स्वीकार नहीं किया ।


4. ब्रिटेन की सरकार ने वायसराय लॉर्ड रीडिंग को आदेश दिया कि वह वार्तालाप को वहीं समाप्त कर दें । सरकारी दमन का दौर चलता रहा। स्वयंसेवी संगठनों को अवैध घोषित कर दिया गया, सार्वजनिक सभाओं पर प्रतिबंध लगा दिया गया, प्रेस को प्रतिबंधित कर दिया गया ।

 



6. असहयोग आन्दोलन समाप्ति का निर्णय

असहयोग आन्दोलन को लगभग एक साल से ज्यादा का समय हो चूका था, लेकिन अंग्रेज सरकार समझौता करने के लिए राजी  नहीं थी। गांधीजी पर राष्ट्रीय  स्तर पर सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू करने का दबाव पड़ने लगा था। 1 फ़रवरी  1922 को गांधीजी ने अंग्रेज सरकार को अंतिम अवसर  दिया की सरकार-


  • · राजनीतिक बंदियों को रिहा करे ,
  • · नागरिक स्वतंत्रता को बहाल करे.
  • · प्रेस से नियंत्रण को हटाए,


यदि सरकार इन बातों को नहीं मानती है तो वे राष्ट्रीय स्तर पर सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू करने के लिए विवश हो जायेंगे। यह आंदोलन सूरत के बारदोली तालुका से शुरू होने वाला था। लेकिन चौरी चौरा की घटना ने सविनय अवज्ञा आंदोलन को 1930 तक के लिए टाल दिया। 

 

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I. चौरी-चौरा काण्ड

फ़रवरी 1922 में संयुक्त प्रांत (उत्तर प्रदेश) के गोरखपुर जिले के चौरी चौरा में आंदोलनकारियों द्वारा एक पुलिस थाने पर आक्रमण कर उसमें आग लगा दी। इस अग्निकांड में 22 पुलिस वालों की जान चली गई। इस कार्यवाही से गाँधी जी स्तब्ध रह गए और असहयोग आंदोलन वापस लेने की घोषणा कर दी।

 

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II. बारदोली प्रस्ताव

12 फरवरी 1922 को बारदोली (गुजरात) में कांग्रेस कार्यकारिणी की बैठक हुई थी, जहां बारदोली प्रस्ताव पारित हुआ। बारदोली प्रस्ताव के माध्यम से असहयोग आंदोलन समाप्त हो गया।


अनेक राष्ट्रवादी नेता जैसे मोतीलाल नेहरू, C. R. Das, जवाहरलाल नेहरू, सुभाष चंद्र बोस आदि ने असहयोग आंदोलन को वापस लिए जाने के प्रति अपनी असहमति व्यक्त की।

 

 

III. गाँधी जी की गिरफ्तारी

गाँधी जी को 10 मार्च 1922 में राजद्रोह के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया। गाँधी जी को न्यायाधीश ब्रूम फ़ील्ड ने असंतोष भड़काने के अपराध में 6 वर्ष की कैद की सज़ा सुनाई। स्वास्थ्य सम्बन्धी कारणों से गाँधी जी को 5 फ़रवरी 1924 को रिहा कर दिया गया।

 

 

 

7. असहयोग आंदोलन को वापस लेने का कारण

1. आन्दोलन  लगभग एक साल से जयदा का समय हो चुका था, लेकिन अंग्रेज सरकार समझौता करने के लिए इच्छुक नहीं थी। इससे पहले की आंदोलन की आतंरिक कमजोरियाँ उभर कर सामने आती और आंदोलन असफल होता, चौरी चौरा कांड ने आंदोलन  को वापस लेने का अवसर प्रदान कर दिया ।


2. 1921 के मध्य में में आन्दोलन कमजोर पड़ने लगा था। छात्र स्कूलों में और वकील अदालतों में वापस लौटने लगे थे। व्यापारी वर्ग भी विदेशी कपड़ो के स्टॉक से चिंतित होने लगा था। बैठकों और रैलियों  में लोगोकी संख्या लगातार काम होती जा रही थी। अत: ऐसी स्थिति में एक  लंबे समय तक आंदोलन में ऊर्जा और जोश को बनाए रखना संभव नहीं था।


3. आंदोलन के दौरान गांधीजी को यह एहसास हुआ की अभी भारतीय जनता ने अहिंसा के सिद्धांत को अच्छी तरह से नहीं सीखा है। अगर आंदोलन के दौरान हिंसा होती है तो अंग्रेज सरकार को इसको दबाने के लिए हथियार सहित बल प्रयोग की  छूट मिल जाएगी। इससे आंदोलन का उद्देश्य विफल हो जायेगा। 


4. खिलाफत का मुद्दा: खिलाफत का मुद्दा भी कुछ समय  बाद समाप्त हो गया। तुर्की की जनता ने नवंबर 1922 में मुस्तफा कमल पाशा के अगुवाई में विद्रोह कर दिया। सुल्तान के सभी अधिकार चीन लिए गए। खलीफा का पद समाप्त कर दिया गया। तुर्की में एक धर्मनिरपेक्ष राज्य की स्थापना कर दी गयी। यूरोप के समान विधिक व्यवस्था लागू की गाए। महिलाओ को व्यापक अधिकार दिए ग़ये। शिक्षा का राष्ट्रीयकरण कर दिया गया।  आधुनिक उद्योगों और  कृषि के विकास को प्रोत्साहित किया गया। 1924 में खलीफा का पद पूरी तरह से समाप्त कर दिया गया। खिलाफत का मुद्दा खत्म  होने पर आंदोलन में मुसलमानो की भागीदारी नगण्य हो गयी थी।

 

 


8. असहयोग आंदोलन की सफलताएं - उपलब्धियां

1. असहयोग आंदोलन ने पहली बार देश की जनता को एकत्रित  किया। इसमें किसान, मजदूर, दस्तकार, व्यापारी, व्यवसायी, कर्मचारी, पुरुष, महिलाएं, बच्चे, बूढ़े, सभी लोग शामिल थे। देश के सभी कोने में इस आंदोलन का प्रभाव दिखा था।     

  

2. असहयोग आंदोलन की सबसे बड़ी सफलता यह थी की इसने भारतीय जनता को आधुनिक राजनीति से परिचित कराया और उनमे आज़ादी प्राप्त करने की भावना को जगाने का काम किया। यह प्रथम अवसर था जब राष्ट्रीयता ने गाँवो, कस्बों, स्कूलों, सबको अपने प्रभाव में ले लिया। यह आंदोलन आगामी संगर्ष की पृष्ठ्भूमि तैयार करने में सहायक साबित हुआ।


3. इस आंदोलन में बड़े पैमाने पर मुसलमानो की भागीदारी और सांप्रदायिक एकता एक बड़ी उपलब्धि थी। खिलाफत आंदोलन के कारण मुस्लिमों ने इस आंदोलन में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया और आंदोलन को सफल बनाने में सहयोग किया।


4. इस आंदोलन के पश्चात भारतियों में अंग्रेजी शासन से भय समाप्त हो गया और भारतीय जनता स्वतंत्रता प्राप्ति क प्रति पूरी तरह प्रतिबद्ध हो गयी।




9. आंदोलन में शामिल महत्त्वपूर्ण व्यक्तित्व

  • ·    सी राजगोपालाचारी,
  • ·  वल्लभभाई पटेल,
  • ·  गोपबंधु दास,
  • ·  अज़मल खान,
  • ·  सुभाष चंद्र बोस
  • ·  जवाहरलाल नेहरू
  • ·  मोतीलाल नेहरू
  • ·  मौलाना मोहम्मद अली
  • ·  मौलाना शौकत अली
  • ·  लाला लाजपत राय
  • ·  राजेन्द्र प्रसाद
  • ·  C.R. Das




10. FAQ

Q. Asahyog Andolan kab hua tha?

A. 1920

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