गोलमेज सम्मेलन | Golmej Sammelan | Round Table Conferences in Hindi
Table of
Contents 1. गोलमेज सम्मेलन की पृष्ठभूमि 2. प्रथम गोलमेज सम्मेलन 3. दूसरा गोलमेज सम्मेलन 4. तीसरा गोलमेज सम्मेलन 5. FAQ |
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1. गोलमेज सम्मेलन की पृष्ठभूमि | Golmej Sammelan
भारत में स्वराज या स्व-शासन की मांग तेजी से बढ़ रही थी। सविनय अवज्ञा आन्दोलन
की तीव्रता को देखकर अंग्रेजो
को यह अहसास हो गया था कि अब भारतीयों
को भी सत्ता में हिस्सा देना आवश्यक हो गया है।
गोलमेज सम्मेलन
का आयोजन वाइसराय लार्ड
इर्विन (कार्यकाल 1926 से 1931)
की 31 अगस्त, 1929 ई. की घोषणा
के आधार पर हुआ
था। इस सम्मेलन में
लार्ड इर्विन ने साइमन कमीशन/
भारतीय सांविधिक आयोग (Simon
Commission/ Indian
Statutory Commission) की
रिपोर्ट प्रकाशित हो जाने के
बाद भारत के नये
संविधान की रचना के
लिए लंदन में 'गोलमेज़
सम्मेलन' का प्रस्ताव रखा
था ।
अतः
ब्रिटिश सरकार ने घोषणा की
कि भारत के विभिन्न
राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों
एवं ब्रिटिश राजनीतिज्ञों का एक गोलमेज
सम्मेलन लंदन में बुलाया
जाएगा। इसमें साइमन कमीशन की रिपोर्ट के
आधार पर भारत की
राजनीतिक समस्या पर विचार-विमर्श
किया जायेगा।
इस लक्ष्य को
ध्यान में रखते हुए ब्रिटिश सरकार द्वारा भारत में संवैधानिक सुधारों पर चर्चा के लिए
1930 से 1932 ई. के बीच सम्मेलनों की एक श्रृंखला के अन्तर्गत लंदन में तीन गोलमेज सम्मेलन
आयोजित किये गए।
2. प्रथम गोलमेज सम्मेलन (12 नवंबर 1930 – 19 जनवरी 1931) | First Golmej Sammelan
प्रथम गोलमेज
सम्मेलन जॉर्ज पंचम
ने 12 नवम्बर 1930 को लन्दन के
सेंट जेम्स महल में आधिकारिक तौर
पर प्रारम्भ किया और इसकी
अध्यक्षता ब्रिटेन के प्रधानमंत्री रैमसे/रेम्जे मैकडोनाल्ड (Ramsay
MacDonald) ने की। प्रथम गोलमेज
सम्मेलन पहली ऐसी वार्ता
थी, जिसमें ब्रिटिश शासकों द्वारा भारतीयों को बराबर का
दर्जा दिया गया।
प्रथम
गोलमेज सम्मेलन में कुल
86 प्रतिनिधियों ने भाग लिया।
जहां कांग्रेस एवं अधिकांश व्यवसायिक
संगठनों ने इस सम्मेलन का बहिष्कार किया, वहीँ मुस्लिम लीग, हिन्दू मह्रासभा, उदारवादियों,
दलित वर्ग तथा भारतीय रजवाड़ों ने इस सम्मलेन में भाग लिया। इस सम्मेलन में भाग लेने
वाले प्रतिनिधि मुख्यतः तीन भागों में विभक्त किये जा सकते हैं।
1. तीनों ब्रिटिश
दल-लिबरल, कंजरवेटिव और श्रमिक दल के प्रतिनिधि।
2. ब्रिटिश
भारत से ब्रिटिश सरकार द्वारा मनोनीत सदस्य (16 प्रतिनिधि) ।
3. भारत के
राज्यों से राजकुमार या उनके द्वारा मनोनीत प्रतिनिधि (57 प्रतिनिधि) ।
सहभागी
• मुस्लिम लीग: मौलाना मोहम्मद अली जौहर,
मोहम्मद शफी, आगा खान, मोहम्मद अली जिन्ना, मोहम्मद ज़फ़रुल्ला खान, ए के फजलुल हक.
• हिंदू महासभा: बी एस मुंजे और एम. आर.
जयकर
• उदारवादी: तेज बहादुर सप्रू, सी. वाय.
चिंतामणि और श्रीनिवास शास्त्री
• सिख: सरदार उज्जल सिंह
• केथोलिक (इसाई): ए. टी. पन्नीरसेल्वम
• दलित वर्ग : बी.आर.अम्बेडकर
• रियासतें: अक़बर हैदरी (हैदराबाद के दीवान),
मैसूर के दीवान सर मिर्ज़ा इस्माइल, ग्वालियर के कैलाश नारायण हक्सर, पटियाला के महाराजा
भूपिंदर सिंह, बड़ोदा के महाराजा सयाजीराव गायकवाड़ तृतीय, जम्मू और कश्मीर के महाराजा
हरि सिंह, बीकानेर के महाराजा गंगा सिंह, भोपाल के नवाब हमीदुल्ला खान, नवानगर के के.
एस. रणजीतसिंहजी, अलवर के महाराजा जय सिंह प्रभाकर और इंदौर, रीवा, धौलपुर, कोरिया,
सांगली और सरीला के शासक।
सम्मेलन में
भाग लेने वाले प्रतिनिधियों के चयन का मापदण्ड असमान था। ब्रिटेन की तीनों पार्टियों
का प्रतिनिधित्व अलग-अलग प्रतिनिधि कर रहे थे, जबकि भारतीय प्रतिनिधियों में से कुछ
वायसराय द्वारा मनोनीत थे तथा कुछ का मनोनयन भारतीय रजवाड़ों ने किया था। प्रतिनिधियों
के मनोनयन का मुख्य आधार ब्रिटिश सरकार के प्रति निष्ठा तथा उनके स्वशासन संबंधी विचार
थे।
प्रथम गोलमेज सम्मेलन में तीन आधारभूत सिद्धान्तों पर चर्चा की गई/ निम्नलिखित सुझाव प्रस्तुत किए-
1. संघ शासन-
केन्द्रीय व्यवस्थापिका सभा का निर्माण संघ शासन के आधार पर होगा और ब्रिटिश भारतीय
प्रांत तथा देशी राज्य संघ शासन की इकाई का रूप धारण करेंगे.
2. संरक्षण
सहित उत्तरदाई शासन- केंद्र में उत्तरदायी शासन की स्थापना होगी, किन्तु सुरक्षा और
विदेश विभाग भारत के गवर्नर जनरल के अधीन होंगे.
3. अंतरित काल
में रक्षात्मक विधान- अंतरित काल की आवश्यकता को दृष्टि में रखते हुए रक्षात्मक विधान
रखे जाएंगे।
ब्रिटिश प्रधानमंत्री
के सुझावों के प्रति प्रतिनिधियों की भिन्न-भिन्न प्रतिक्रियाएं हुईं। संघ शासन के
सिद्धांत को सभी प्रतिनिधियों ने स्वीकार कर लिया। देशी नरेशों ने भी संघ में सम्मिलित
होना स्वीकार कर लिया।
इस सम्मेलन
में सम्मिलित सभी दलों के प्रतिनिधि केवल अपने व्यक्तिगत हितों के पक्षपोषण में प्रयासरत
रहे। सम्मेलन के दौरान केवल समस्यायें व विचारार्थ विषय ही प्रस्तुत किये गये लेकिन
कोई ठोस परिणाम सामने नहीं आ सका।
प्रथम गोलमेज
सम्मेलन में साप्रंदायिकता की समस्या सर्वाधिक विवादपूर्ण
रही। साम्प्रदायिक समस्या पर समझौता नहीं हो सका। मुसलमानों ने अलग प्रतिनिधित्व की
माँग की तथा जिन्ना अपनी चौदह शर्तों को मनवाने के लिए अड़े रहे। मुसलमान पृथक् तथा
सांप्रदायिक प्रतिनिधित्व के पक्ष में थे, जबकि अम्बेडकर ने अनुसूचित जातियों के लिए
पृथक निवार्चक मडंल की माँग की।
साप्रंदायिकता
की समस्या से सम्मलेन में गतिरोध उत्पन्न हो गया और इस प्रकार प्रथम गोलमेज सम्मेलन असफल रहा। अंततः 19 जनवरी
1931 को बिना किसी वास्तविक उपलब्धि के यह सम्मेलन अनिश्चित काल के लिए स्थगित हो गया।
प्रथम सम्मेलन
में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने अपना कोई प्रतिनिधि नहीं भेजा था। वस्तुतः कांग्रेस
के बहिष्कार ने इस सममेलन को निरर्थक बना दिया था।
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3. दूसरा (द्वितीय) गोलमेज सम्मेलन (7 सितम्बर, 1930 से 1 दिसम्बर, 1931) | Second Golmej Sammelan
प्रथम गोलमेज
सम्मेलन की असफलता बाद सरकार ने
कांग्रेस को द्वितीय गोलमेज
सम्मेलन (Second Round
Table Conference) में सम्मिलित करने के लिए
प्रयास प्रारम्भ कर दिए। गाँधी
जी और वायसराय इरविन की
बातचीत 19 फरवरी, 1931 से प्रारंभ हुई।
15 दिन की बातचीत के
बाद 5 मार्च, 1931 को एक समझौता
हुआ, जिसे “दिल्ली समझौता” या “गाँधी-इरविन
समझौता” के
नाम से जाना जाता
है। इस समझौते के बाद कांग्रेस द्वारा सविनय अवज्ञा आन्दोलन
स्थगित कर दिया गया और कांग्रेस ने द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने का वादा किया।
भगत सिंह तथा
उनके साथियों की फांसी की सजा माफ न करवा पाने के कारण इस समझौते के बाद गाँधी
जी को तीखी आलोचना
सहनी पड़ी। कांग्रेस के
“कराची अधिवेशन” में गाँधी
जी को “काले झंडे”दिखाए।
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द्वितीय गोलमेज सम्मेलन शुरू होने के ठीक पहले इंग्लैण्ड की राजनीतिक स्थिति में निम्न परिवर्तन हुए-
- मजदूर दल की सरकार के स्थान पर राष्ट्रीय सरकार का निर्माण हुआ जिसमें मजदूर, अनुदार तथा उदार तीनों दल सम्मिलित हुए.
- सर सेमुअल होर भारत सचिव नियुक्त किया गया,
- लार्ड इर्विन जैसे उदारवादी के स्थान पर लॉर्ड वेलिगंटन वायसराय नियुक्त हुआ,
द्वितीय
सम्मेलन में गाँधीजी ही
एक मात्र कांग्रेसी प्रतिनिधि के रूप में
29 अगस्त 1931 को राजपुताना जहाज
से ब्रिटेन के लिए रवाना
हुए। उनके साथ इस
वार्ता में मदन मोहन
मालवीय, देवदास गाँधी, सरोजनी नायडू, एनी बेसेंट, घनश्याम
दास बिड़ला, मीरा बेन एवं
महादेव देसाई जैसे लोग भी
सम्मिलित थे, जो अलग
अलग दलों से सम्बन्धित
थे।
दूसरा गोलमेज
सम्मेलन 7 सितंबर, 1931 को आरंभ हो गया। महात्मा गाँधी 12 सितंबर, 1931 में लंदन पहुँचे
और इसमें 12 सितंबर को सम्मिलित हुए।
गाँधी जी की माँगें-
• केंद्र
और प्रान्तों में तुरंत और पूर्ण रूप से एक उत्तरदायी सरकार स्थापित की जानी चाहिए.
• केवल
कांग्रेस ही राजनीतिक भारत का प्रतिनिधित्व करती है.
• अस्पृश्य
भी हिन्दू हैं, अतः उन्हें “अल्पसंख्यक” नहीं माना जाना चाहिए.
• मुसलामानों
या अन्य अल्पसंख्यकों के लिए पृथक निर्वाचन या विशेष सुरक्षा उपायों को नहीं अपनाया
जाना चाहिए.
गाँधी जी की
मांगों को सम्मेलन में अस्वीकार कर दिया गया। मुसलामानों, ईसाईयों, आंग्ल-भारतीयों
एवं दलितों पृथक प्रतिनिधित्व की माँग करने लगे। ये सभी एक “अल्पसंख्यक गठजोड़” के रूप में संगठित हो गये। गाँधी जी साम्प्रदायिक आधार पर
किसी भी संवैधानिक प्रस्ताव के विरोध में अंत तक विरोध करते रहे ।
द्वितीय
सम्मेलन में मुख्य रूप
से साम्प्रदायिक प्रतिनिधित्व के आधार पर
सीटों के बँटवारे के
प्रश्न पर विचार- विमर्श
होता रहा। किन्तु इस
प्रश्न पर परस्पर मतैक्य
न हो सका।
इस सम्मेलन में ब्रिटिश प्रधानमन्त्री
रैमजे मैकडोनाल्ड ने दो मुस्लिम
प्रान्तों यथा उत्तरी-पश्चिमी
सीमांत प्रान्त एवं सिंध के
गठन एवं भारतीय सलाहकारी
परिषद की स्थापना की
घोषणा की। रैमजे मैकडोनाल्ड
ने स्पष्ट किया कि यदि
भारतीयों में आपसी सहमती
नहीं हो सकी तो
साम्प्रदायिक निर्णयों की घोषणा करेंगे।
लंदन में हुआ
यह द्वितीय सम्मेलन किसी नतीजे पर नहीं पहुँच सका, इसलिए गाँधी जी को 28 दिसंबर,1931 को लंदन से
खाली हाथ बंबई (भारत)
लौटना पड़ा। भारत आकर गांधी
जी ने वायसराय वेलिंगटन
से मिलने का प्रयास किया।
लेकिन वायसराय ने मिलने से
मना कर दिया। दूसरी तरफ
गांधी इरविन समझौते को भी सरकार
ने दफन कर दिया
था। भारत लौटने पर
गांधी जी ने सविनय
अवज्ञा आंदोलन फिर से शुरू
करने की घोषणा की।
*द्वितीय
गोलमेज सम्मेलन में मदनमोहन मालवीय
एवं एनी बेसेन्ट ने
स्वयं के खर्च पर भाग
लिया था।
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कम्यूनल अवार्ड | साम्प्रदायिक पंचाट
चूँकि
द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में सांप्रदायिक समस्या
का कोई निराकरण नहीं
हो सका ,अत: इस
गतिरोध का लाभ उठाकर
प्रधानमंत्री रैम्ज़े मैकडोनल्ड ने 16 अगस्त 1932 को साम्प्रदायिक निर्णय
की घोषणा की, जिसमें हिन्दुओं
के दलित वर्ग को
भी मान्य अल्पसख्यकों की तरह अलग
प्रतिनिधित्व देने की व्यवस्था
थी।
इसके
तहत मुसलमानों, सिक्खों, भारतीय ईसाईयों एवं एंग्लो इण्डियनों
हेतु पृथक-पृथक चुनाव
पद्धति की व्यवस्था की
गई । महिलाओं हेतु
भी पृथक स्थान निर्धारित
किए जाएंगे। दलित वर्ग को
हिन्दुओं से पृथक माना
जाएगा
।
पूना समझौता (26 सितम्बर 1932)
गाँधीजी
कम्यूनल अवार्ड से अत्यन्त दु:खी हुए। गांधीजी
ने 20 सितम्बर 1932 को आमरण अनशन
आरंभ कर दिया। बाद
में पूना समझौता 26 सितम्बर
1932 को हुआ। इस समझौते
के अनुसार -
1. हरिजन,
हिन्दुओं से पृथक नहीं
माने जायेंगे। जितने स्थान कम्यूनल अवार्ड द्वारा हरिजनों को दिए गए
थे अब उनसे दुगने
स्थान अब उन्हें दिए
जाएंगे ।
2. स्थानीय
संस्थाओं एवं सार्वजनिक सेवाओं
में हरिजनों को उचित प्रतिनिधित्व
दिया गया।
3. हरिजनों को शिक्षा हेतु आर्थिक सहायता देने का वादा किया।
गांधीजी ने पूना समझौते
के पश्चात आमरण अनशन वापस
ले लिया।
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*कांग्रेस
ने 1 मई 1933 को सविनय अवज्ञा
आन्दोलन वापिस ले लिया।
4. तीसरा (तृतीय) गोलमेज सम्मेलन (17 नवंबर 1932 – 24 दिसंबर 1932) | Third Golmej Sammelan
तीसरा
और अंतिम गोलमेज सम्मेलन 17 नवम्बर 1932
को प्रारम्भ हुआ। मात्र 46
प्रतिनिधियों ने इस सम्मलेन
में भाग लिया। ब्रिटेन
की लेबर पार्टी और
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने इस सत्र
में भाग नहीं लिया।
तीसरा गोलमेज
सम्मेलन में भारत सरकार अधिनियम, 1935 हेतु ठोस योजना के अंतिम स्वरूप को पेश किया
गया। इस सम्मेलन के समय भारत के सचिव सेमुअल होअर थे।
तीसरे गोलमेज
सम्मलेन की समाप्ति (24 दिसंबर 1932) के बाद तीनों गोलमेज सम्मेलनों की सिफारिशों के आधार (सैमुअल होअर
के पर्यवेक्षण में) पर एक श्वेत पत्र जारी किया गया जिस पर विचार करने के लिए लॉर्ड
लिनलिथगो की अध्यक्षता में ब्रिटिश संसद द्वारा एक संयुक्त समिति गठित की गई। लिनोलिथो
की सिफारिशों में कुछ संशोधन कर 1935 का भारत सरकार अधिनियम पारित किया गया।
तृतीय
गोलमेज सम्मेलन में शामिल प्रतिनिधि
भारतीय
प्रान्तों के प्रतिनिधि
- अकबर हैदरी (हैदराबाद के दीवान),
- मिर्जा इस्माइल (मैसूर के दीवान),
- वी.टी. कृष्णामचारी (बड़ौदा के दीवान),
- वजाहत हुसैन (जम्मू और कश्मीर),
- सर सुखदेव प्रसाद (उदयपुर, जयपुर, जोधपुर),
- जे.ए. सुर्वे (कोल्हापुर),
- रजा अवध नारायण बिसर्य (भोपाल),
- मनु भाई मेहता (बीकानेर),
- नवाब लियाकत हयात खान (पटियाला).
ब्रिटिश-भारत के प्रतिनिधि
- आगा खां तृतीय,
- डॉ. अम्बेडकर (दलित वर्ग),
- बोब्बिली के रामकृष्ण रंगा राव,
- सर हुबर्ट कार्र (यूरोपियन),
- नानक चंद पंडित,
- ऐ.एच. गजनवी,
- हनरी गिड़ने (आंग्ल-भारतीय),
- हाफ़िज़ हिदायात हुसैन,
- मोहम्मद इकबाल,
- एम.आर. जयकर,
- कोवासजी जहाँगीर,
- एन.एम. जोशी (मजदूर),
- ऐ.पी. पेट्रो,
- तेज बहादुर सप्रू,
- डॉ. सफाअत अहमद खां,
- सर सादिलाल,
- तारा सिंह मल्होत्रा,
- सर निर्पेंद्र नाथ सरकार,
- सर पुरुषोत्तम दास ठाकुर दास,
- मुहम्मद जफरुल्लाह खां.
*जिन्ना
ने तीसरा गोलमेज सम्मेलन में हिस्सा नहीं
लिया।
*बीकानेर
महाराजा गंगा सिंह ने
तीनो सम्मेलनो मे भाग लिया।
5. FAQ
Q. कौन लंदन में आयोजित
तीनों गोलमेज सम्मेलनों में शामिल हुए
थे?
A. भीम
राव अम्बेडकर ने तीनों गोल मेज सम्मेलनों
में हिस्सा लिया था।
Q. 1932 में
कौनसा गोलमेज सम्मेलन हुआ?
A. 1932 में
तीसरा गोलमेज सम्मेलन (17 नवंबर1932 – 24 दिसंबर 1932) हुआ था।
Q. गोलमेज
सम्मेलन कब कब हुए? | प्रथम द्वितीय और तृतीय गोलमेज
सम्मेलन कब हुआ? | कितने
गोलमेज सम्मेलन हुए थे?
1. प्रथम
गोलमेज सम्मेलन (12 नवंबर 1930 – 19 जनवरी 1931)
2. दूसरा
गोलमेज सम्मेलन (7 सितम्बर, 1930 से 1 दिसम्बर, 1931)
3. तीसरा
गोलमेज सम्मेलन (17 नवंबर1932 – 24 दिसंबर 1932)
Q. गोलमेज
सम्मेलन क्यों बुलाया गया? | गोलमेज सम्मेलन का उद्देश्य क्या
था?
A. भारत
में संवैधानिक सुधारों पर चर्चा के
लिए 1930 से 1932 ई. के बीच
लंदन में तीन गोलमेज
सम्मेलन आयोजित किये गए।
Q. प्रथम
गोलमेज सम्मेलन के समय भारत
के वायसराय कौन थे?
A. प्रथम
गोलमेज सम्मेलन के समय भारत
के वायसराय वाइसराय लार्ड इर्विन (कार्यकाल 1926 से 1931) थे।
Q. द्वितीय
गोलमेज सम्मेलन के समय ब्रिटेन
के प्रधानमंत्री कौन थे? \ प्रथम
गोलमेज सम्मेलन के समय इंग्लैंड
के प्रधानमंत्री कौन थे?
A. प्रथम /द्वितीय/तृतीय गोलमेज सम्मेलन के समय ब्रिटेन
के प्रधानमंत्री रैमसे/रेम्जे मैकडोनाल्ड (Ramsay
MacDonald) थे।
Q. तृतीय
गोलमेज सम्मेलन कहाँ हुआ?
A. तृतीय
गोलमेज सम्मेलन लन्दन हुआ था।
Q. पहिल्या
गोलमेज परिषद के अध्यक्ष कौन
होते?
A. रैमसे/रेम्जे मैकडोनाल्ड (Ramsay
MacDonald) ।
Q. डॉ
आंबेडकर ने कितने गोलमेज
सम्मेलन में भाग लिया?
A. भीम राव अम्बेडकर ने तीनों गोलमेज सम्मेलनों में हिस्सा लिया था।
Q. कौन
से गोलमेज सम्मेलन में
कांग्रेस
के
प्रतिनिधि
ने
भाग
लिया?
A. द्वितीय
गोलमेज सम्मेलन में गाँधीजी
एक मात्र कांग्रेसी प्रतिनिधि के रूप में भाग लिया।
Q. प्रथम
गोलमेज सम्मेलन के समय भारत
का वायसराय कौन था?
A. प्रथम गोलमेज
सम्मेलन के समय लॉर्ड इरविन
1926-1931 तक भारत के वायसराय
थे।
Q. द्वितीय
गोलमेज सम्मेलन के समय भारत
का गवर्नर जनरल कौन था?
A. द्वितीय
गोलमेज सम्मेलन के समय भारत का गवर्नर जनरल /वायसराय लॉर्ड वेलिगंटन
था।
Q. तीनो गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने वाले भारतीय? | उस भारतीय का नाम बताइए जिसने लंदन में हुए तीनों गोलमेज सम्मेलन में किसने भाग लिया? | कौन तीनो गोलमेज सम्मेलन में शामिल हुए?
A. अम्बेडकर
और तेज बहादुर सप्रू
ने तीनों गोल मेज सम्मेलनों
में हिस्सा लिया। महात्मा गांधी ने दूसरे गोलमेज
सम्मेलन में हिस्सा लिया।
Q. गोलमेज
सम्मेलन में भारतीय
ईसाईयों का प्रतिनिधित्व किसने
किया था ?
A. के.टी.पाल ।
Q. प्रथम
गोलमेज सम्मेलन लन्दन के किस हॉल
में सम्पन्न हुआ?
A. सेंट
जेम्स महल ।
Q. गांधीजी
द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में कहाँ ठहरे
थे?
A. किंग्सले
हॉल में ।
Q. मौलाना
मुहम्मद अली कौन से
सम्मेलन में भाग लिए
थे ?
A. प्रथम गोलमेज सम्मेलन में।
गोलमेज सम्मेलन | Golmej Sammelan | Round Table Conferences in Hindi |
अच्छा rha
जवाब देंहटाएंhelp full
जवाब देंहटाएंVery helpful 👍
जवाब देंहटाएंएक संतुलित और ज्ञान वर्धक राजनीतिक चर्चा का सुंदर चित्रण 🌹🌹🌹🙏
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