Kakori Kaand 1925 in Hindi | Kakori Rail (Train) Kand 9 August, 1925 | काकोरी ट्रेन कार्यवाही-Kakori Train Action

Kakori Kaand 1925 in Hindi | Kakori Rail (Train) Kand 9 August, 1925| काकोरी ट्रेन कार्यवाही-Kakori Train Action

Table of Contents

1. काकोरी काण्ड की पृष्ठभूमि

2. काकोरी काण्ड, 1925

3. काकोरी-काण्ड में शामिल क्रांतिकारियों  के नाम

4. काकोरी काण्ड में गिरफ़्तार किये गए व्यक्ति

5. काकोरी कांड का मुकदमा

6. काकोरी कांड के शहीदों को फांसी गोंडा, गोरखपुर, इलाहाबाद, फैजाबाद

7. राम प्रसाद 'बिस्मिल' (पण्डित जी) की कविता

8. FAQ

 



1. काकोरी काण्ड (Kakori Kaand) की पृष्ठभूमि

हिंदुस्तानरिपब्लिकन एसोसिएशन (एच०आर०ए०) भारत की स्वतंत्रता से पहले उत्तर भारत की एक प्रमुख क्रान्तिकारी पार्टी थी जिसका गठन हिन्दुस्तान को अंग्रेजों के शासन से मुक्त कराने के उद्देश्य से उत्तर प्रदेश तथा बंगाल के कुछ क्रान्तिकारियों द्वारा सन् 1924 में कानपुर में किया गया था। इसकी स्थापना में लाला हरदयाल की भी महत्वपूर्ण भूमिका थी।


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हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन (एच०आर०ए०) के दो प्रमुख नेताओं शचीन्द्रनाथ सान्याल और योगेशचन्द्र चटर्जी के गिरफ्तार हो जाने से राम प्रसाद 'बिस्मिल' के कन्धों पर उत्तर प्रदेश के साथ-साथ बंगाल के क्रान्तिकारी सदस्यों का उत्तरदायित्व भी आ गया।


एसोसिएशन के कार्य हेतु धन की आवश्यकता पहले से अधिक बढ गयी थी। पार्टी के कार्य हेतु धन की आवश्यकता को पूरा करने के लिए वे महाजनों और जमींदारों को लूटा करते थे। उन्होंने 7 मार्च 1925 को बिचपुरी तथा 24 मई 1925 को द्वारकापुर (उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले में) में दो राजनीतिक डकैतियाँ डालीं। परन्तु उनमें कुछ विशेष धन उन्हें प्राप्त न हो सका। इन दोनों डकैतियों में एक-एक व्यक्ति मौके पर ही मारा गया।


इससे क्रांतिकारियों ने अपनी लूट की रणनीति बदली और सरकारी खजानों को लूटने की योजना बनाई। यह तय किया गया कि संगठन के खर्च और हथियारों के लिए सरकारी खजाने पर डकैती डाली जाएगी।


अतः क्रान्तिकारियों द्वारा चलाए जा रहे स्वतन्त्रता के आन्दोलन को गति देने के लिये धन की तत्काल व्यवस्था की जरूरत को पूरा करने के लिए राम प्रसाद बिस्मिल ने शाहजहाँपुर में हुई बैठक के दौरान काकोरी में ट्रेन डकैती करके अंग्रेजी सरकार का खजाना लूटने की योजना बनायीयह तय किया गया  कि किसी पर हमला नहीं करना है। जब तक जान पर ना आ पड़े कोई गोली नहीं चलानी है ।


काकोरी षडयंत्र के संबंध में जब एचआरए दल की बैठक हुई तो अशफाक उल्लाह खां ने ट्रेन डकैती का विरोध किया था, लेकिन अंततः काकोरी में ट्रेन में डकैती डालने की योजना बहुमत से पास हो गई

 

 

2. काकोरी काण्ड, 9 अगस्त 1925

हिंदुस्तानरिपब्लिकन एसोसिएशन (एच०आर०ए०) के क्रांतिकारियों ने 9 अगस्त 1925 को उत्तर प्रदेश में लखनऊ के पास स्थित काकोरी में एक ट्रेन में डकैती डाली थी। इसी घटना को काकोरी कांड’ (Kakori Kaand) के नाम से जाना जाता है।


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काकोरी काण्ड (Kakori Kaand),  9 अगस्त 1925 को भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के क्रान्तिकारियों द्वारा ब्रिटिश राज के विरुद्ध लड़ने के लिए हथियार खरीदने के लिये ब्रिटिश सरकार का ही खजाना लूट लेने की एक ऐतिहासिक घटना थी।


8 डाउन सहारनपुर-लखनऊ पैसेंजर से रेल विभाग की संग्रहीत धनराशि को लखनऊ में रेलवे के मुख्य खजाने में जमा कराने के लिए ले जाया जाता था। इसमें खजाना गार्ड/ रक्षक की बोगी में रखा जाता था।


इस डकैती के लिए 8 अगस्त, 1925 का दिन चुना गया था। मगर थोड़ी देरी से पहुंचने के कारण क्रान्तिकारियों की ट्रेन छूट गई। दूसरे दिन 9 अगस्त, 1925 डकैती को अंजाम दिया गया। शाम को यह ट्रेन काकोरी से चली तो क्रांतिकारी इसमें चढ़ गए।


लखनऊ से पहले काकोरी रेलवे स्टेशन पर रुक कर जैसे ही गाड़ी आगे बढी, योजनानुसार राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी ने 8 डाउन सहारनपुर-लखनऊ पैसेन्जर ट्रेन को चेन खींच कर रोका और क्रान्तिकारियों द्वारा पण्डित राम प्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में अशफाक उल्ला खाँ, पण्डित चन्द्रशेखर आज़ाद 6 अन्य सहयोगियों की सहायता से ट्रेन पर धावा बोलते हुए रक्षक/ गार्ड के डिब्बे से सरकारी खजाने का बक्सा नीचे गिरा दिया।


पहले तो उसे खोलने का प्रयास किया गया किन्तु जब वह नहीं खुला तो अशफाक उल्ला खाँ ने अपना माउजर मन्मथनाथ गुप्त को पकड़ा दिया और हथौड़ा लेकर बक्सा तोड़ने में जुट गए। मन्मथनाथ गुप्त ने उत्सुकतावश माउजर का ट्रैगर दबा दिया जिससे निकली  गोली अहमद अली नाम के यात्री को लग गयी। वह मौके पर ही मर गया।

 

जल्दबाजी में चाँदी के सिक्कों नोटों से भरे चमड़े के थैले चादरों में बाँधकर वहाँ से भागने में एक चादर वहीं छूट गई। इस ट्रेन डकैती में कुल 4601 रुपये 15 आने और छह पाई लूटे गए थे इसकी एफआईआर की कॉपी आज भी काकोरी थाने में फोटो फ्रेम में सुरक्षि‍त रखी गई है। F.I.R की मूल कॉपी उर्दू में लिखी गई थी।

 

इस लूट के दौरान क्रांतिकारियों द्वारा जर्मनी की 4 माउजर और देसी पिस्तौलो का उपयोग किया गया था।

 

 

3. काकोरी-काण्ड में शामिल क्रांतिकारियों के नाम | List of Revolutionaries in Kakori Kaand

वास्तविक रूप से काकोरी-काण्ड में केवल 10 लोग ही शामिल हुए थे -

    1. रामप्रसाद बिस्मिल (नेतृत्व)
    2. अशफाक उल्ला खाँ
    3. मुरारी शर्मा
    4. बनवारी लाल
    5. राजेन्द्र लाहिडी
    6. शचीन्द्रनाथ बख्शी
    7. केशव चक्रवर्ती
    8. चन्द्रशेखर आजाद
    9. मन्मथनाथ गुप्त (नाबालिग)
    10. मुकुन्दी लाल

 

 

4. काकोरी काण्ड में गिरफ़्तार किये गए व्यक्ति

ब्रिटिश सरकार ने काकोरी ट्रेन डकैती को गम्भीरता से लिया और सीआईडी इंस्पेक्टर तसद्दुक हुसैन के नेतृत्व में स्कॉटलैण्ड की पुलिस को इसकी जाँच का काम सौंपा दिया। पुलिस ने काकोरी काण्ड के सम्बन्ध में जानकारी देने षड्यन्त्र में शामिल किसी भी व्यक्ति को गिरफ़्तार करवाने के लिये पुरस्कार की घोषणा के साथ विज्ञापन सभी प्रमुख स्थानों पर लगा दिये। क्रांतिकारियों को पकड़वाने के लिए पांच हजार रुपये के इनाम की घोषणा की गई थी।


पुलिस को घटनास्थल पर मिली चादर में लगे धोबी के निशान से पता चल गया कि चादर शाहजहाँपुर के किसी व्यक्ति की है। शाहजहाँपुर के धोबियों से पूछताछ पर पता चला कि चादर बनारसीलाल की है। बिस्मिल के साथी बनारसीलाल से मिलकर पुलिस ने काकोरी डकैती की सारी जानकारी प्राप्त कर ली।


26 सितम्बर 1925 को राम प्रसाद बिस्मिल को गिरफ़्तार कर लिया गया। इस मामले में 40 अन्य व्यक्तियों को गिरफ़्तार किया गया था।

 

गिरफ़्तारी के स्थान के साथ उनके नाम इस प्रकार हैं:

आगरा से

  • चन्द्रधर जौहरी
  • चन्द्रभाल जौहरी


इलाहाबाद से

  • शीतला सहाय
  • ज्योतिशंकर दीक्षित
  • भूपेंद्रनाथ सान्याल

 

उरई से

  • वीरभद्र तिवारी

 

बनारस से

  • मन्मथनाथ गुप्त
  • दामोदरस्वरूप सेठ
  • रामनाथ पाण्डे
  • देवदत्त भट्टाचार्य
  • इन्द्रविक्रम सिंह
  • मुकुन्दी लाल

 

बंगाल से

  • शचीन्द्रनाथ सान्याल
  • योगेशचन्द्र चटर्जी
  • राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी
  • शरतचन्द्र गुहा
  • कालिदास बोस

 

एटा से

  • बाबूराम वर्मा

 

हरदोई से

  • भैरों सिंह

 

जबलपुर से

  • प्रणवेश कुमार चटर्जी

 

कानपुर से

  • रामदुलारे त्रिवेदी
  • गोपी मोहन
  • राजकुमार सिन्हा
  • सुरेशचन्द्र भट्टाचार्य

 

लाहौर से

  • मोहनलाल गौतम

 

लखीमपुर से

  • हरनाम सुन्दरलाल

 

लखनऊ से

  • गोविंदचरण कार
  • शचीन्द्रनाथ विश्वास

 

मेरठ से

  • विष्णुशरण दुब्लिश

 

पूना से

  • रामकृष्ण खत्री

 

रायबरेली से

  • बनवारी लाल

 

सहारनपुर से

  • रामप्रसाद बिस्मिल

 

शाहजहांपुर से

  • बनारसी लाल
  • लाला हरगोविन्द
  • प्रेमकृष्ण खन्ना
  • इन्दुभूषण मित्रा
  • ठाकुर रोशन सिंह
  • रामदत्त शुक्ला
  • मदनलाल
  • रामरत्न शुक्ला

 

बाद में गिरफ़्तार

दिल्ली से

  • अशफाक उल्ला खाँ

 

भागलपुर से

  • शचीन्द्रनाथ बख्शी

 

 

5. काकोरी कांड का मुकदमा

दो चरणों में चला मुकदमा

दिसंबर 1925 से अगस्त 1927 तक लखनऊ के रोशनद्दौला कचहरी और फिर बाद में रिंग थियेटर  में यह मुकदमा दो चरणों में चला -

1. काकोरी षडयंत्र केस,

2. पूरक केस।


1. काकोरी षडयंत्र केस

काकोरी कांड का मुकदमा लखनऊ के रोशनद्दौला कचहरी और रिंग थियेटर (वर्त्तमान में इस भवन में लखनऊ का प्रधान डाकघर है) में करीब 10 महीने तक चला था। काकोरी ट्रेन डकैती में 4601 रुपए लूटे गए थे जबकि सरकार ने काकोरी कांड का मुकदमा लड़ने में 10 लाख खर्च कर दिए


जगतनारायण 'मुल्ला' को सरकारी पक्ष रखने का काम सौंपा गया।  क्रान्तिकारियों की ओर से के०सी० दत्त, जयकरणनाथ मिश्र कृपाशंकर हजेला ने क्रमशः राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी, ठाकुर रोशन सिंह अशफाक उल्ला खाँ की पैरवी की।


6 अप्रैल 1927 को इस पर फैसला सुनाया गया जिसमें जज हेमिल्टन ने ब्रिटिश कानून व्यवस्था की धारा 121, 120 बी और 396 के तहत सजाएं सुनाई


काकोरी-काण्ड (Kakori Kaand) में केवल 10 लोग ही वास्तविक रूप से शामिल हुए थे। इन 10 लोगों में से पाँच - चन्द्रशेखर आजाद, मुरारी शर्मा, केशव चक्रवर्ती, अशफाक उल्ला खाँ शचीन्द्र नाथ बख्शी को छोड़कर, जो उस समय तक पुलिस के हाथ नहीं आये, शेष सभी व्यक्तियों पर सरकार बनाम राम प्रसाद बिस्मिल अन्य के नाम से मुकदमा चला और उन्हें 5 वर्ष की कैद से लेकर फाँसी तक की सजा हुई। 14 को साक्ष्य मिलने के कारण रिहा कर दिया गया।

 

बिस्मिल की बहस

राम प्रसाद 'बिस्मिल' ने सरकारी अधिवक्ता लेने से इनकार कर दिया औरअपनी पैरवी खुद की, क्योंकि सरकारी खर्चे पर उन्हें लक्ष्मीशंकर मिश्र नाम का एक बड़ा साधारण-सा वकील दिया गया था।


बिस्मिल द्वारा की गयी कानूनी बहस से सरकारी तबके में सनसनी फैल गयी। अतएव अदालत ने बिस्मिल की स्वयं वकालत करने की अर्जी खारिज कर दी। अन्ततोगत्वा लक्ष्मीशंकर मिश्र को ही राम प्रसाद 'बिस्मिल' की ओर से बहस करने की इजाजत दी गयी।

 

इस मुकदमे में एक खासबात यह थी कि इसमें वह अपराध  भी शामिल किये गए, जिनका काकोरी कांड से कोई संबंध नहीं था। जैसे 25 दिसंबर 1924 को पीलीभीत जिले के बमरौला गांव में, फिर 9 मार्च 1925 को बिचुरी गांव में और 24 मई 1925 को प्रतापगढ़ जिले के द्वारकापुर गांव में किए गए अपराध।


काकोरी काण्ड मुक़दमे का अन्तिम निर्णय

22 अगस्त 1927 को काकोरी काण्ड (Kakori Kaand) का फैसला सुनाया गया उसके अनुसार -

  • राम प्रसाद बिस्मिल, राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी अशफाक उल्ला खाँ को आजीवन कारावास तथा फाँसी का आदेश हुआ।
  • ठाकुर रोशन सिंह को 10 वर्ष की कड़ी कैद तथा फाँसी का आदेश हुआ।
  • शचीन्द्रनाथ सान्याल उम्र-कैद बरकरार रही।
  • भूपेन्द्रनाथ सान्याल (शचीन्द्रनाथ सान्याल के छोटे भाई) बनवारी लाल दोनों को 5 वर्ष की सजा के आदेश।
  • योगेशचन्द्र चटर्जी, मुकुन्दी लाल गोविन्दचरण की सजायें 10 वर्ष से बढ़ाकर आजीवन कारावास में बदल दी गयीं।
  • विष्णुशरण दुब्लिश व सुरेशचन्द्र भट्टाचार्य की सजायें भी 7 वर्ष से बढ़ाकर 10 वर्ष कर दी गयी।
  • रामकृष्ण खत्री की 10 वर्ष के कठोर कारावास की सजा बरकरार रही।
  • प्रणवेश कुमार चटर्जी की सजा को 5 वर्ष से घटाकर 4 वर्ष कर दिया गया।
  • काकोरी काण्ड में रामनाथ पाण्डेय को सबसे कम सजा (3 वर्ष) हुई।
  • मन्मथनाथ गुप्त (इन्हीं की गोली से यात्री मारा गया था) की सजा बढ़ाकर 14 वर्ष कर दी गयी।
  • एक अन्य अभियुक्त राम दुलारे त्रिवेदी को इस प्रकरण में 5 वर्ष के कठोर कारावास की सजा दी गयी।

 

2. पूरक केस

फरार क्रान्तिकारियों में अशफाक उल्ला खाँ को दिल्ली और शचीन्द्र नाथ बख्शी को भागलपुर से पुलिस ने उस समय गिरफ़्तार किया जब काकोरी-काण्ड के मुख्य प्रकरण का फैसला सुनाया जा चुका था। विशेष न्यायाधीश जे० आर० डब्लू० बैनेट की न्यायालय में काकोरी षड़यंत्र का पूरक प्रकरण दर्ज हुआ और 13 जुलाई 1927 को इन दोनों पर भी सरकार के विरुद्ध साजिश रचने का आरोप लगाते हुए अशफाक उल्ला खाँ को फाँसी तथा शचीन्द्रनाथ बख्शी को आजीवन कारावास की सजा सुनायी गयी।


क्षमादान के प्रयास

सेंट्रल कौन्सिल के 78 सदस्यों ने तत्कालीन वायसराय को शिमला जाकर हस्ताक्षर युक्त मेमोरियल दिया जिस पर प्रमुख रूप से पं० मदन मोहन मालवीय, मोहम्मद अली जिन्ना, एन० सी० केलकर, लाला लाजपत राय, गोविन्द वल्लभ पन्त आदि ने अपने हस्ताक्षर किये थे किन्तु वायसराय पर उसका कोई असर हुआ।


इसके बाद मदन मोहन मालवीय के नेतृत्व में पाँच व्यक्तियों का एक प्रतिनिधि मण्डल शिमला जाकर वायसराय से दोबारा मिला, किन्तु वायसराय ने उन्हें साफ मना कर दिया।

 

प्रिवी कौन्सिल में अपील खारिज

बैरिस्टर मोहन लाल सक्सेना ने प्रिवी कौन्सिल में क्षमादान की याचिका के दस्तावेज तैयार करके इंग्लैण्ड के वकील एस० एल० पोलक के पास भिजवाये। किन्तु प्रिवी कौन्सिल में भेजी गयी क्षमादान की अपील भी खारिज हो गयी।

 

 

6. काकोरी कांड के शहीदों को फांसी – गोंडा, गोरखपुर, इलाहाबाद, फैजाबाद

  1. गोंडा जेल में 17 दिसंबर 1927 को सबसे पहले राजेंद्रनाथ लाहिड़ी को फांसी दी गई।
  2. गोरखपुर जेल में 19 दिसंबर, 1927 को पं. रामप्रसाद बिस्मिल को फांसी दी गई।
  3. इलाहाबाद में ठाकुर रोशन सिंह को फांसी दी गई।
  4. फैजाबाद जेल में अशफाक उल्ला खां को फांसी दी गई।

काकोरी कांड (Kakori Kaand) में अंग्रेजों ने चन्द्रशेखर आजाद को खोजने का बहुत प्रयास किया, लेकिन वे हुलिया बदल-बदल कर बहुत समय तक अंग्रेजों को धोखा देने में सफल होते रहे। अंततः 27 फरवरी 1931 को इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में अंग्रेजों का सामना करते हुए चन्द्रशेखर आजाद अपनी ही गोली से शहीद हो गए।

 

 

7. राम प्रसाद 'बिस्मिल' (पण्डित जी) की कविता

राम प्रसाद 'बिस्मिल' (पण्डित जी) ने काकोरी कांड मुक़दमे के दौरान मेरा रँग दे बसन्ती चोला”

कविता लिखी थी।


मेरा रँग दे बसन्ती चोला...

हो मेरा रँग दे बसन्ती चोला...

इसी रंग में रँग के शिवा ने माँ का बन्धन खोला,

यही रंग हल्दीघाटी में था प्रताप ने घोला;

नव बसन्त में भारत के हित वीरों का यह टोला,

किस मस्ती से पहन के निकला यह बासन्ती चोला।

मेरा रँग दे बसन्ती चोला...

हो मेरा रँग दे बसन्ती चोला...

 

 

8. FAQ

Q. काकोरी षड्यंत्र में कौन कौन शामिल थे?

A. काकोरी-काण्ड (Kakori Kaand) में केवल 10 लोग ही शामिल हुए थे -

  1. रामप्रसाद बिस्मिल (नेतृत्व)
  2. अशफाक उल्ला खाँ
  3. मुरारी शर्मा
  4. बनवारी लाल
  5. राजेन्द्र लाहिडी
  6. शचीन्द्रनाथ बख्शी
  7. केशव चक्रवर्ती
  8. चन्द्रशेखर आजाद
  9. मन्मथनाथ गुप्त (नाबालिग)
  10. मुकुन्दी लाल

Q. काकोरी कांड के सरकारी वकील कौन थे?

A. काकोरी कांड के सरकारी वकील जगतनारायण 'मुल्ला' थे। 

 

Q. काकोरी कांड कहाँ हुआ? खजाना कब और कहां लूटा गया?

A. 9 अगस्त 1925 को उत्तर प्रदेश में लखनऊ के पास स्थित काकोरी में हुआ।

 

Q. काकोरी कहां है?

A. काकोरी भारत के उत्तर प्रदेश राज्य में लखनऊ जिले में स्थित है।

 

Q. काकोरी कांड में कितने क्रांतिकारियों को गिरफ्तार किया गया *?

A. राम प्रसाद बिस्मिल और 40 अन्य व्यक्तियों को गिरफ़्तार किया गया था।

 

Q. काकोरी कांड के नायक कौन थे? | काकोरी डकैती घटना के नायक कौन थे? | काकोरी कांड का नेतृत्व किसने किया?

A. काकोरी कांड (Kakori Kaand) के नायक राम प्रसाद बिस्मिल थे/काकोरी डकैती घटना के नायक राम प्रसाद बिस्मिल थे।

 

Q. काकोरी कांड स्मृति दिवस कब मनाया जाता है?

A. काकोरी कांड स्मृति दिवस 9 अगस्त 1925 को मनाया जाता है।

 

Q. राम प्रसाद बिस्मिल ने अपनी माँ की तुलना किसकी माता से की है?

A. राम प्रसाद बिस्मिल ने अपनी माँ की तुलना मेजिनी की माता से की है।

 

Q. काकोरी कांड की योजना कहां बनाई गई थी?

A. राम प्रसाद बिस्मिल ने शाहजहाँपुर में हुई बैठक के दौरान काकोरी कांड की योजना बनाई गई थी

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